आज 29 जून 2012 को सुबह 5 बजे मोटरसाइकिल द्वारा पटियाला( रोडेवाला साहिब) के लिये रवाना हुआ। जिसमें जाते समय मोटरसाइकिल में पंक्चर हो गया था उसके बाद का सफर ठीक रहा। 9 बजे रोडेवाला साहिब पहुंच गया वहां पर आज साध संगत का मेला लगा था,हालांकि मेरा वहां जाने का उद्देश्य ग्वार का बीज लाना था। मैंने जिन ढिल्लों साहिब से बीज लेना था वो लिया,और उसके बाद बाबा जी के अनुरोध पर मत्था टेकने गया और प्रसाद चखा। यहां पर जनता का बहुत ही मनोरम दृश्य देखने को मिला। जिसको देखने को मेरा मन करने लगा।सब पुरूष व महिलायें यहां पर बहुत शांत व व्यवहार कुशल दिखाई दे रहे थे। मालूम नहीं हमारे देश में लोग धरों में या अपने धंधे पर व सडकों पर चलते हुये इतने शांत क्यों नहीं हो पाते।
वहां पर सभी स्त्री-पुरूष आपस में धक्का-मुक्की होते हुये भी शांत रहते हैं हालांकि असल जिंदगी में ऐसा नहीं करते यही लोग, खैर इसके बाद मैंने वापसी की यात्रा शुरू की। जिसमें पटियाला शहर का हल्का सा,चलते-चलते मुआयना किया। जिला मुख्यालय बहुत शांत व सुंदर दिखाई दिया। मुख्यालय के सामने की सडक एकदम चकाचक थी बाकी सडकें ठीक-ठाक ती मगर कुछ गावों की तरफ निकलने वाली सडकें खराब हालत में थी। मुझे सबसे अच्छा यह लगा कि पटियाला शहर में जगह-जगह खजूर के पेड खडे थे जो मेरे दिल को छू गये। ये लम्बो-लम्बे पेड मुझे याद दिला रहे थे,कि- पंछी को छाया नहीं,फल लगे अति दूर,,की , लेकिन आजकल ये पेड शहर तो छोडिये गांवों में नहीं देखने को नसीब होते। ऐसे हालात में इन्हें देखकर मन को बडा सुकून हुआ। इनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। इसके बाद मेरी इस लधु यात्रा में कुछ खास नहीं है और इस तेज धूप वाली चिलचिलाती गर्मी में ही मैंने वापसी की, पूरे 200 कि.मी. तय करते हुये दोपहर एक बजे कुरूक्षेत्र पहुंच गया।www.facebook.com/sujankavi
वहां पर सभी स्त्री-पुरूष आपस में धक्का-मुक्की होते हुये भी शांत रहते हैं हालांकि असल जिंदगी में ऐसा नहीं करते यही लोग, खैर इसके बाद मैंने वापसी की यात्रा शुरू की। जिसमें पटियाला शहर का हल्का सा,चलते-चलते मुआयना किया। जिला मुख्यालय बहुत शांत व सुंदर दिखाई दिया। मुख्यालय के सामने की सडक एकदम चकाचक थी बाकी सडकें ठीक-ठाक ती मगर कुछ गावों की तरफ निकलने वाली सडकें खराब हालत में थी। मुझे सबसे अच्छा यह लगा कि पटियाला शहर में जगह-जगह खजूर के पेड खडे थे जो मेरे दिल को छू गये। ये लम्बो-लम्बे पेड मुझे याद दिला रहे थे,कि- पंछी को छाया नहीं,फल लगे अति दूर,,की , लेकिन आजकल ये पेड शहर तो छोडिये गांवों में नहीं देखने को नसीब होते। ऐसे हालात में इन्हें देखकर मन को बडा सुकून हुआ। इनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। इसके बाद मेरी इस लधु यात्रा में कुछ खास नहीं है और इस तेज धूप वाली चिलचिलाती गर्मी में ही मैंने वापसी की, पूरे 200 कि.मी. तय करते हुये दोपहर एक बजे कुरूक्षेत्र पहुंच गया।www.facebook.com/sujankavi
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