बुधवार, 13 जून 2012

ग़ज़ल- सोचिये हम हो गये आबाद क्या…

सोचिये हम हो गये आबाद क्या  

अपने ख्यालों से हुये आजाद क्या..

आज के हालात पर क्या कुछ कहें,

हो रहे आबाद क्या, बर्बाद क्या….

पेश करते हैं बदल कर शक्ल को, 

आइने भी हो गये उस्ताद क्या….   

कितना उम्मीदें गरीबी कर रही, 

काम आयेगी कोई फरियाद क्या..

आपका अब फोन भी आता नहीं, 

क्या हुआ आती नहीं है याद क्या..

जिस ग़ज़ल में आँसुओं की बात हो,

उस ग़ज़ल पर वाह क्या इरशाद क्या…

                          सूबे सिहं सुजान

            13-06-2012

         फोन..09416334841

           कुरूक्षेत्र

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