जिन दिनों मानसून चलती है
हर कली कपडों को बदलती है
मैं उसे देखकर उछलता हूँ,
वो मुझे देखकर मचलती है
जिंदगी बारिशों बिना क्या है,
जिंदगी बारिशों में खिलती है
बारिशें दोस्त एक उत्सव हैं,
इनसे घर-घर में शम्अ जलती है
मिट्टी के रोम-रोम में बसकर,
बूँद फिर आत्मा से मिलती है
सूबे सिहं सुजान
हर कली कपडों को बदलती है
मैं उसे देखकर उछलता हूँ,
वो मुझे देखकर मचलती है
जिंदगी बारिशों बिना क्या है,
जिंदगी बारिशों में खिलती है
बारिशें दोस्त एक उत्सव हैं,
इनसे घर-घर में शम्अ जलती है
मिट्टी के रोम-रोम में बसकर,
बूँद फिर आत्मा से मिलती है
सूबे सिहं सुजान
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