. गण हुये तन्त्र के हाथ कठपुतलियाँ
अब सुने कौन गणतन्त्र की सिसकियाँ
. इसलिये आज दुर्दिन पडा देखना
हम रहे करते बस गल्तियाँ-गल्तियाँ
चील चिडियाँ सभी खत्म होने लगीं
बस रहीं हर जगह बस्तियाँ-बस्तियाँ
पशु-पक्षी जितने थे उतने वाहन हुये
भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
. कम दिनों के लिये होते हैं वलवले
शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
सूबे सिहं सुजान
अब सुने कौन गणतन्त्र की सिसकियाँ
. इसलिये आज दुर्दिन पडा देखना
हम रहे करते बस गल्तियाँ-गल्तियाँ
चील चिडियाँ सभी खत्म होने लगीं
बस रहीं हर जगह बस्तियाँ-बस्तियाँ
पशु-पक्षी जितने थे उतने वाहन हुये
भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
. कम दिनों के लिये होते हैं वलवले
शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
सूबे सिहं सुजान
प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
जवाब देंहटाएंनिर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
Bahut sundar panktiyan.
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