बुधवार, 11 जुलाई 2012

फ़न्नी और अ़रूज़ी ऐतबार से इम्तियाज़ी ग़ज़ल

आ़रिज़ हैं दो खुश्बू के बन, एक इस तरफ,एक उस तरफ

इक मोतिया,इक यासमन, एक इस तरफ,एक उस तरफ।

 

मशरिक़ में सूरज ज़ौ-फ़िशा, मग़रिब में ज़ोहरा ज़ौ-फ़िगन

गोया हैं दो लाले-यमन, एक इस तरफ,एक उस तरफ।

 

इक से खुसूमत,दूसरे से भरती है उल्फ़त का दम

दुनिया के दो-दो हैं दहन, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

दिल की कभी भरती है हामी,तो कभी इदराक की

चालाक हैं, आंखें हैं पुर-फ़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

इदराक कहता है संभल, दिल है कि कहता है मचल

ये राहबर वो राहज़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

अ़ल्लाम दिल्ली में तो हरियाणा में अ़ल्लामी रहे

दोनों थे उस्तादाने-फ़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

“तफ़्ता”। हमें चुनना पडेगा, एक को,सिर्फ एक को

कुर्सी-व-ज़र,हुब्बे-वतन, एक इस तरफ,एक उस तरफ

                          डॅा. सत्य प्रकाश “तफ़्ता”

                        तफ़्ता ज़ारी

                      जानशीन डॅा. ज़ार अ़ल्लामी

            mobile. 09896850699

       written by_ sube singh sujan

     09416334841

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