आ़रिज़ हैं दो खुश्बू के बन, एक इस तरफ,एक उस तरफ
इक मोतिया,इक यासमन, एक इस तरफ,एक उस तरफ।
मशरिक़ में सूरज ज़ौ-फ़िशा, मग़रिब में ज़ोहरा ज़ौ-फ़िगन
गोया हैं दो लाले-यमन, एक इस तरफ,एक उस तरफ।
इक से खुसूमत,दूसरे से भरती है उल्फ़त का दम
दुनिया के दो-दो हैं दहन, एक इस तरफ,एक उस तरफ
दिल की कभी भरती है हामी,तो कभी इदराक की
चालाक हैं, आंखें हैं पुर-फ़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ
इदराक कहता है संभल, दिल है कि कहता है मचल
ये राहबर वो राहज़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ
अ़ल्लाम दिल्ली में तो हरियाणा में अ़ल्लामी रहे
दोनों थे उस्तादाने-फ़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ
“तफ़्ता”। हमें चुनना पडेगा, एक को,सिर्फ एक को
कुर्सी-व-ज़र,हुब्बे-वतन, एक इस तरफ,एक उस तरफ
डॅा. सत्य प्रकाश “तफ़्ता”
तफ़्ता ज़ारी
जानशीन डॅा. ज़ार अ़ल्लामी
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written by_ sube singh sujan
09416334841
मेरे उस्ताद की रचना है।
जवाब देंहटाएंआजकल इस तरह की रचना असंभव हैं