सच में एक दिन बहुत जल्द ही *शिक्षा दिवस* मनाने की आवश्यकता पड़ने वाली है ।
क्योंकि शिक्षा तो गायब ही हो रही है हर रोज शिक्षकों को शैक्षणिक कार्यों से दूर किया जा रहा है ।
क्योंकि शिक्षा तो गायब ही हो रही है हर रोज शिक्षकों को शैक्षणिक कार्यों से दूर किया जा रहा है ।
गोया जो जो भाषा,संस्कृति,गुरू गुजरने या अंतिम समय में लगते हैं हम उन्हें बचाने की मुहिम को दिवस के रूप में मनाते आये हैं और मनाने का अर्थ बहुत ज्यादा यह लगता है कि हम अपनी कोशिशों को तिलांजलि दे देते हैं ।
सरकार व विभागीय अधिकारियों की कोशिश ही जिम्मेदार होती है लेकिन हम शिक्षक लोग बड़े आराम से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं जबकि समाज में किसी भी रीति रिवाज़ या संस्कृति को मारने में सब हिस्सेदारी में होते हैं खैर कुछ तो मकसद दिवस मनाने के अच्छे भी होते हैं यदि सकारात्मक रूप से हर जगह इस्तेमाल किये जायें तो ।
मुझे लगता है हमारे नेताओं से ज्यादा हमारे विभागीय अधिकारियों की कमियाँ ज्यादा होती हैं किसी भी परिपाटी को शुरू करने या बंद करने में और ये परिपाटी या आदेश ही अच्छा या बुरा मोड़ देते हैं ।
नेतागण तो चंद रोज होते हैं बदल जाते हैं ।
और हमारे कर्मचारी,संस्था,समाज सारा फोकस सरकार व नेताओं को देते हैं जिस कारण दोष समाज में पनपते ही रहते हैं और बीमारियाँ लाइलाज हो जाती हैं । हम समाज के जो जागरूू लोग हैं हम भी नेेेता के ही पीीछे पड़ कर तक गये हैैं हम बहुुुत बार स्वयं को ही समझदार
मुझे लगता है हमारे नेताओं से ज्यादा हमारे विभागीय अधिकारियों की कमियाँ ज्यादा होती हैं किसी भी परिपाटी को शुरू करने या बंद करने में और ये परिपाटी या आदेश ही अच्छा या बुरा मोड़ देते हैं ।
नेतागण तो चंद रोज होते हैं बदल जाते हैं ।
और हमारे कर्मचारी,संस्था,समाज सारा फोकस सरकार व नेताओं को देते हैं जिस कारण दोष समाज में पनपते ही रहते हैं और बीमारियाँ लाइलाज हो जाती हैं । हम समाज के जो जागरूू लोग हैं हम भी नेेेता के ही पीीछे पड़ कर तक गये हैैं हम बहुुुत बार स्वयं को ही समझदार
समझ बैठते हैं और निशाना चूक हो रही होती है अब हमें ये निशाना चूक ठीक करनी होगी तभी कुछ हालात बदलेंगें।
सूबे सिंह सुजान
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