सपने हैं काँच के जरा रखना संभाल कर
जीना पड़ेगा,दिल से,महब्बत निकला कर
मैंने कहा था इतना कि चलना संभाल कर
वो देखने लगे मुझे आँखें निकाल कर
मुझसे जो दोस्ती करो तो ध्यान रखना ये
किस्मत को आँकना मेरी सिक्का उछाल कर
कीटाणु दिल के पानी में इतने पनप गये
पीने दे अब मुझे भी महब्बत उबाल कर
अपनी ग़ज़ल में मैं तेरी बातें भी करता हूँ
ग़ज़लों को सुन मेरी, और खुद को निहाल कर
अपनी कहानी कहनी है तो कहना अपने आप
लेखक नहीं कहे तो न इसका मलाल कर
चालाकियाँ पहुँच गई ऐसे मुकाम पे
सब खेलते हैं ताश से पत्ते निकाल कर
क्या प्यार है कि दोस्त भी पहचानते नहीं
चेहरे पे मेरे कौन गया रंग डाल कर
ऐ आने वाली नस्लों तुम्हें हैं संभालने
हम दे रहे तुम्हें नये रस्ते निकाल कर
*सूबे सिंह "सुजान"*
*कुरूक्षेत्र हरियाणा*
*मोबाइल* *9416334841*
*email* *subesujan21@gmail.com*
जीना पड़ेगा,दिल से,महब्बत निकला कर
मैंने कहा था इतना कि चलना संभाल कर
वो देखने लगे मुझे आँखें निकाल कर
मुझसे जो दोस्ती करो तो ध्यान रखना ये
किस्मत को आँकना मेरी सिक्का उछाल कर
कीटाणु दिल के पानी में इतने पनप गये
पीने दे अब मुझे भी महब्बत उबाल कर
अपनी ग़ज़ल में मैं तेरी बातें भी करता हूँ
ग़ज़लों को सुन मेरी, और खुद को निहाल कर
अपनी कहानी कहनी है तो कहना अपने आप
लेखक नहीं कहे तो न इसका मलाल कर
चालाकियाँ पहुँच गई ऐसे मुकाम पे
सब खेलते हैं ताश से पत्ते निकाल कर
क्या प्यार है कि दोस्त भी पहचानते नहीं
चेहरे पे मेरे कौन गया रंग डाल कर
ऐ आने वाली नस्लों तुम्हें हैं संभालने
हम दे रहे तुम्हें नये रस्ते निकाल कर
*सूबे सिंह "सुजान"*
*कुरूक्षेत्र हरियाणा*
*मोबाइल* *9416334841*
*email* *subesujan21@gmail.com*
https://youtu.be/Tz_4M72uJ-M
https://youtu.be/Tz_4M72uJ-M
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें