कवि सम्मेलन और मुशायरों की दुर्दशा
कविता के बाजारीकरण होने पर चुटकले,अश्लीलता बिकती है यही सत्य है वर्तमान मुशायरों,कवि सम्मेलन के मंचों का ।
लेकिन इस प्रायोजित अश्लीलता के विरोध में अबल तो कोई कुछ चाहकर भी कुछ कह नहीं पाता और यदि कभी कोई दिलेरी से यह बात कह देता है तो नव कवियों की फौज पीछे पड़ जाती है ।मंच पर जहाँ वास्तविक कविता होती है वहाँ से श्रोता गायब होते हैं प्रायोजित करने वाले तो दूर दूर तक दिखाई ही नहीं देते ।
लेकिन जहाँ पर चुटकले,अश्लीलता होती है वहाँ पर प्रायोजक दौड़ते हुए और श्रोता,दर्शक औंधे मुँह पड़े मिलते हैं ।
महिला कवियत्रीयों के साथ वैसे तो मंचों पर भी यही हाल है कि वो बोल भी नहीं पाती कि उससे पहले वाह वाह की बरसात बिना बात के बादलों की तरह होने लगती है बात या कोई संदेह क्या कहा गया होता है यह कभी किसी को पूछना कवि सम्मेलन के बाद , तो पता चलेगा यार पता नहीं क्या कहा लेकिन क्या बात है वाह वाह भाई सबसे बढ़िया उसी ने कहा है यह आवाजें सुनाई पड़ती हैं ।
लेकिन फेसबकीय साहित्य व मंचों पर तो महिला कवियत्रीयों को बेशुमार मान सम्मान, वाह वाह , हजारों लाइक व टिप्पणियों से नवाज़ा जाता है ।
मैं इस लेख में यह बिल्कुल नहीं कहना चाहता कि मैं महिला कवियत्रीयों से ख़ैर खाता हूँ या कोई जलन करता हूँ कृपा करके यह तो मन से निकाल दीजिए ।
मैं किसी महिला का मन भी नहीं दुखाना चाहता हूँ ।
लेकिन मैं अपनी माँ,बहन समान सभी महिला कवियत्रीयों को यह ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि आप मंचों की इस तरह के व्यवहार को ध्यान से परख़ने की कोशिश कीजिए और ऐसे वाक़्यों पर अपनी बेबाक बात कहने से न हिचकें ।
अगर आप अश्लीलता, द्वियअर्थी चुटकलों का मंच पर विरोध करेंगी और सही सभ्य ढंग से इस तरह अपनी बात रखेंगी तो इसमें आपका ज्यादा सम्मान होगा और कविता व साहित्य का सम्मान के साथ साथ भविष्य उज्ज्वल होगा जिससे सार्थक समाज का विकास होगा और हम साहित्य के उद्देश्य को हासिल करने में सक्षम होंगे ।
आज के समय में जहाँ बेमकसद ,बेमतलब की कविता भी हो रही है वहीं कविता का राजनीतिक पार्टियों के द्वारा दोहन भी किया जा रहा है हम कवि लोग राजनीतिक पार्टियों के द्वारा प्रायोजित कवि सम्मेलन को समझ नहीं पाते हैं नये रचनाकार तो जब तक कविता को सीख भी नहीं पाते तब तक उन पर राजनीतिक सोच को थोप कर दूषित कर दिया जाता है और वे जीवन भर कविता व साहित्य को ही नहीं समझ पाते और राजनीति पार्टियों के क़ैद होकर रह जाते हैं और समाज को गहरा आघात पहुँचाते हैं ।
हमारे सामने कविता को बचाये रखने के लिए नये नये खतरे हैं इन खतरों से बचाने के लिए पुस्तकीय कविता,साहित्य ही बेहतरीन है और हमें फेसबुक जैसे नये सोशल मीडिया साहित्यिक गतिविधियों के अंदर जाकर साहित्य को सही दिशा देनी होगी ।
सूबे सिंह सुजान
साहित्यिक खतरों पर बातचीत
दिनांक 7जून 2018
कुरूक्षेत्र
कविता के बाजारीकरण होने पर चुटकले,अश्लीलता बिकती है यही सत्य है वर्तमान मुशायरों,कवि सम्मेलन के मंचों का ।
लेकिन इस प्रायोजित अश्लीलता के विरोध में अबल तो कोई कुछ चाहकर भी कुछ कह नहीं पाता और यदि कभी कोई दिलेरी से यह बात कह देता है तो नव कवियों की फौज पीछे पड़ जाती है ।मंच पर जहाँ वास्तविक कविता होती है वहाँ से श्रोता गायब होते हैं प्रायोजित करने वाले तो दूर दूर तक दिखाई ही नहीं देते ।
लेकिन जहाँ पर चुटकले,अश्लीलता होती है वहाँ पर प्रायोजक दौड़ते हुए और श्रोता,दर्शक औंधे मुँह पड़े मिलते हैं ।
महिला कवियत्रीयों के साथ वैसे तो मंचों पर भी यही हाल है कि वो बोल भी नहीं पाती कि उससे पहले वाह वाह की बरसात बिना बात के बादलों की तरह होने लगती है बात या कोई संदेह क्या कहा गया होता है यह कभी किसी को पूछना कवि सम्मेलन के बाद , तो पता चलेगा यार पता नहीं क्या कहा लेकिन क्या बात है वाह वाह भाई सबसे बढ़िया उसी ने कहा है यह आवाजें सुनाई पड़ती हैं ।
लेकिन फेसबकीय साहित्य व मंचों पर तो महिला कवियत्रीयों को बेशुमार मान सम्मान, वाह वाह , हजारों लाइक व टिप्पणियों से नवाज़ा जाता है ।
मैं इस लेख में यह बिल्कुल नहीं कहना चाहता कि मैं महिला कवियत्रीयों से ख़ैर खाता हूँ या कोई जलन करता हूँ कृपा करके यह तो मन से निकाल दीजिए ।
मैं किसी महिला का मन भी नहीं दुखाना चाहता हूँ ।
लेकिन मैं अपनी माँ,बहन समान सभी महिला कवियत्रीयों को यह ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि आप मंचों की इस तरह के व्यवहार को ध्यान से परख़ने की कोशिश कीजिए और ऐसे वाक़्यों पर अपनी बेबाक बात कहने से न हिचकें ।
अगर आप अश्लीलता, द्वियअर्थी चुटकलों का मंच पर विरोध करेंगी और सही सभ्य ढंग से इस तरह अपनी बात रखेंगी तो इसमें आपका ज्यादा सम्मान होगा और कविता व साहित्य का सम्मान के साथ साथ भविष्य उज्ज्वल होगा जिससे सार्थक समाज का विकास होगा और हम साहित्य के उद्देश्य को हासिल करने में सक्षम होंगे ।
आज के समय में जहाँ बेमकसद ,बेमतलब की कविता भी हो रही है वहीं कविता का राजनीतिक पार्टियों के द्वारा दोहन भी किया जा रहा है हम कवि लोग राजनीतिक पार्टियों के द्वारा प्रायोजित कवि सम्मेलन को समझ नहीं पाते हैं नये रचनाकार तो जब तक कविता को सीख भी नहीं पाते तब तक उन पर राजनीतिक सोच को थोप कर दूषित कर दिया जाता है और वे जीवन भर कविता व साहित्य को ही नहीं समझ पाते और राजनीति पार्टियों के क़ैद होकर रह जाते हैं और समाज को गहरा आघात पहुँचाते हैं ।
हमारे सामने कविता को बचाये रखने के लिए नये नये खतरे हैं इन खतरों से बचाने के लिए पुस्तकीय कविता,साहित्य ही बेहतरीन है और हमें फेसबुक जैसे नये सोशल मीडिया साहित्यिक गतिविधियों के अंदर जाकर साहित्य को सही दिशा देनी होगी ।
सूबे सिंह सुजान
साहित्यिक खतरों पर बातचीत
दिनांक 7जून 2018
कुरूक्षेत्र
सहमत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंजो सीखने को तत्पर होते हैं वो तो सहमत ही होंगे लेकिन जो सीखना नहीं चाहते वो कैसे सहमत होंगे
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुजान जी -- वैसे तो मैं मंचीय संस्कृति से वाकिफ नही -- पर ये सच है तो बहुत दुखद है और किसी भी स्थिति में साहित्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है |
जवाब देंहटाएंसत्य है आप स्वयं देख सकते हैं सोशल मीडिया पर
हटाएंयह सोशल मीडिया के युग में भ्रमित करने का खेल आसानी से लोग कर लेते हैं लेकिन ज़िन्दगी जीने के लिए आवश्यक घटक चाहिए
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