सोमवार, 24 मार्च 2025

साहित्यकार भी बेहद झूठ बोलते हैं


 कविता पढ़ना और समझना आज के दौर में बहुत कठिन है क्योंकि कविता में क्या कहा गया है और क्यों कहा गया है यह समझना एक युवा के लिए ज़्यादा पेचीदा हो जाता है वह युवा सोच कर कुछ आया है और उसे वैचारिक रूप से क़ैद कर लिया जाता है और वह स्वतंत्र नहीं रह पाया, स्वतंत्र नहीं कह पाया।

साहित्य में भी इसी तरह यहीं से गुलाम बनाया जाता है।


लेखक, कवि, साहित्यकार भी बेहद झूठ बोलते हैं, राजनीति करते हैं, धर्म, अधर्म करते हैं और तो और गरीब को गरीब रखने का प्रयास करते हैं उसके अधिकारों की बात उसके मुंह पर करते हैं और सच में उसकी जड़ें काटते हैं उसे हमेशा गरीब रखना चाहते हैं और उसके समाज सुधार के नाम पर आप विदेशी ताकतों से पैसे बटोरते रहते हैं।

जो साहित्यकार हिन्दू, मुस्लिम की बात करते हैं बार बार दरअसल वह केवल दूसरों पर आरोप लगाते रहते हैं और स्वयं यह झगड़ा सदा जीवित रखना चाहते हैं वह स्वयं कट्टरपंथी हैं कट्टरता की बात कहते हैं हमें युवा समाज को ऐसे आतंकी सोच के साहित्यकारों से बचाना होगा।

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