सोमवार, 24 मार्च 2025

चापलूसी में प्रतिस्पर्धा कवियों की।

 एक कवि सम्मेलन में एक संचालक महोदय बीच में नीचे आए और मेरे पास बैठ कर कुछ कवियों के नाम पूछे कि कौन कौन से हैं जो अभी नहीं पढ़ पाए मैं जानता नहीं हूं मैंने कुछ नाम बता दिए जिन्हें मैं जानता था।

उन्होंने स्टेज की ओर इशारा करके पूछा कि आप उनमें से कुछ नाम बता सकते हैं मैंने चारों के नाम बताए और जिन्होंने नहीं पढ़ा वह भी और जिन्होंने नहीं पढ़ा वह भी,एक वरिष्ठ कवि की पुस्तक विमोचन वहीं पर हुई थी मंच पर उनका जिक्र भी हो चुका था।

स्वाभाविक बात है वहीं कुछ देर पहले पुस्तक विमोचन किया गया था। लेकिन उन्होंने मुझसे उनका नाम जानना चाहा,तो मैंने बताया कि इनका यह नाम है और अभी उनकी पुस्तक विमोचन हुई है और पुस्तक का नाम भी यह है।


कुछ देर बाद वह मंच पर उन्हीं वरिष्ठ कवि को आमंत्रित करते हुए कहते हैं कि मैं अपने गुरु जी को आमंत्रित कर रही हूं कि मैं फलां कक्षा में उनसे पढ़ा था।


उस सभागार में मैं ही था जो उनके पांच मिनट पहले के ज्ञान और अब के ज्ञान में अति शीघ्र बढ़ोतरी को जानता था बाकी सब लोग तालियां बजा रहे थे मैं हतप्रभ देख रहा था।



सूबे सिंह सुजान

साहित्यकार भी बेहद झूठ बोलते हैं


 कविता पढ़ना और समझना आज के दौर में बहुत कठिन है क्योंकि कविता में क्या कहा गया है और क्यों कहा गया है यह समझना एक युवा के लिए ज़्यादा पेचीदा हो जाता है वह युवा सोच कर कुछ आया है और उसे वैचारिक रूप से क़ैद कर लिया जाता है और वह स्वतंत्र नहीं रह पाया, स्वतंत्र नहीं कह पाया।

साहित्य में भी इसी तरह यहीं से गुलाम बनाया जाता है।


लेखक, कवि, साहित्यकार भी बेहद झूठ बोलते हैं, राजनीति करते हैं, धर्म, अधर्म करते हैं और तो और गरीब को गरीब रखने का प्रयास करते हैं उसके अधिकारों की बात उसके मुंह पर करते हैं और सच में उसकी जड़ें काटते हैं उसे हमेशा गरीब रखना चाहते हैं और उसके समाज सुधार के नाम पर आप विदेशी ताकतों से पैसे बटोरते रहते हैं।

जो साहित्यकार हिन्दू, मुस्लिम की बात करते हैं बार बार दरअसल वह केवल दूसरों पर आरोप लगाते रहते हैं और स्वयं यह झगड़ा सदा जीवित रखना चाहते हैं वह स्वयं कट्टरपंथी हैं कट्टरता की बात कहते हैं हमें युवा समाज को ऐसे आतंकी सोच के साहित्यकारों से बचाना होगा।

मंगलवार, 11 मार्च 2025

अलग अलग असाधारण होते हैं। सूबे सिंह सुजान

 लोग सब शिक्षा की बात करते हैं और ऐसी बातें करते हुए बहुत अच्छे लगते हैं कभी कभी इन्हीं लोगों को साल भर में चुपचाप अपने तरीके से ध्यान से देखना क्या यह लोग उस समय के बाद ऐसे काम करते हुए पाए जाते हैं?

अनेकों अनेक संस्थाओं में काम करने वाले, अनेकानेक विशेष स्थानों पर, विशेष उपाधियों पर, विशेष पुरस्कारों से लैस लोग आपको सुर्खियों में मिलेंगे....

लेकिन आप इन लोगों को सामान्य, रोज़मर्रा के कामों को करते देखना यह क्या करते हैं यदि आप इस तरह ध्यान से देख पाएंगे तो ही आप इनको जान पाएंगे, पहचान पाएंगे।


सब हर जगह पर,एक जैसे कभी नहीं हो सकते यही प्रकृति ने सबसे अच्छी बात बनाई है इससे ही हमारे रहने का, जीने का, समानता का, पनपने का और प्रसन्नता का रहस्य कहिए.... वरना आप जी भी नहीं पाते... शिक्षा, विचार सबसे महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि यही साधन है जो हमें सब उन्नति की ओर लेकर आए हैं और आगे भी ले जाएंगे।

मनुष्य शिक्षा से व्यवहार और विचारों को प्राप्त करता है लेकिन अंग्रेजी, विदेशी शिक्षा में चापलूसी, प्रतिस्पर्धा इससे आगे चलकर दूसरों को पीछे धकेलने, गरीब रखने और अपने काम के लिए क़त्ल तक करने की शिक्षा दी है और यह शिक्षा मानव विरोधी ही नहीं यह प्रकृति, पर्यावरण विरोधी भी है।

कुछ लोग, विचारधारा ऐसी रहीं हैं और अब भी मौजूद हैं वह सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे शंतु



निरामया की भावना से द्वेष करने का अनुवाद करते रहे हैं और क़त्ल करने को कानूनी मान्यता देते रहे हैं इन विचारधाराओं में हम सामान्य लोग अंतर नहीं कर पाए या साहस नहीं कर पाए यह सोचना बहुत जरूरी है।

जो न देखा, वही असाधारण

 आदमी, आदमी असाधारण

हो गई दोस्ती असाधारण।


आपसे  दोस्ती  असाधारण 

फिर हुई दुश्मनी असाधारण।


दोस्तों को परख़ लिया हमने,

जो न देखा वही असाधारण।


सूबे सिंह सुजान