एक समय में एक शिक्षक प्रार्थना सभा में छोटे छोटे बच्चों के सामने किसी अन्य शिक्षक की कक्षा के बच्चों से जानबूझकर कभी जातीय,कक्षीय,मेरी बात नहीं मानी,समय पर नहीं आए, नाखून नहीं कटे हैं(जबकि उसकी अपनी कक्षा में सब कमियां होती थी और उनमें न होकर भी निकाल दी जाती थी) ऐसे अनेकों भेदभाव करता था और अन्य शिक्षक जो उसकी बातों को, भेदभाव को देखकर हंसने लगते थे,यह जानते हुए भी कि इन बच्चों का कोई कसूर नहीं है वह जो यह अनैतिक आचरण कर रहा था वह तो दोषी था ही लेकिन जो यह सुनकर हंस कर उसका समर्थन करते थे वह ज्यादा मूर्खतापूर्ण और अपराध कर रहे थे।
हालांकि उसके इस दुर्व्यवहार, अनैतिकता पर वहां उपस्थित शिक्षकों से ज्यादा गहराई से वह बच्चे समझ रहे होते हैं जिनके साथ वह दुर्व्यवहार हो रहा था समय अपने आप में परिवर्तन लाता है और वह उन बच्चों के माध्यम से ही आता है।
एक शिक्षक से ऐसे आचरण की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए थी लेकिन तंत्र इस प्रकार का है ऐसे ही शिक्षकों को अधिकारी वर्ग समर्थन करते हैं उन्हें हर प्रकार के भेदभाव करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं इस प्रकार समाज का ढांचा बिगड़ जाता है और झूठ, अनैतिकता, अव्यवहारिकता को बल मिलता है
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