शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

स्वार्थवश अहंकार उपजता है

 हमें अपने अभिमान को समझने में देर लगती है हम दूसरों में दोष न होते भी दिखाने का प्रयास करते हैं लेकिन अपने दोष होते हुए भी स्वार्थवश नकारते रहते हैं।


मनुष्य अपने मनोभावों का सहचर होता है लेकिन अंह त्याग करने वाले लोग ही दूसरे के मनोभावों को समझ सकते हैं और ऐसा भी नहीं होता है कि जो मनुष्य एक बार किसी के बारे में बिल्कुल सपाट, ईमानदार निष्ठावान होता है वह हर समय रहे ऐसा असंभव है और ऐसा रहना भी चाहिए वरना मनुष्य सृष्टि के लिए घातक बन सकता है।


प्रकृति ने हर क्षेत्र, वस्तु, तत्वों व जीवों को सबसे सटीक रचनाएं प्रकाशित की हुई हैं इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता सब कुछ भगवान की देन हैं और भगवान ही सृष्टि को चला रहे हैं जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वह स्वयं में अहंकारी हैं वह समझ नहीं पाते उनकी सोचने की शक्ति केवल स्वार्थ भरी होती है वह स्वयं अपने स्वार्थ के लिए नास्तिकता की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं जिस भौतिक तत्वों को वह सब कुछ मानते हैं उनकी समझ भी उन्हें नहीं होती वह उन तत्वों को भी स्वीकार नहीं कर पाते जिनका उपभोग करते रहते हैं।


सूबे सिंह


सुजान

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