होली खेलने के सबके अपने अपने मज़े हैं यह मौसम परिवर्तन का र्योंहार है हम मौसम के परिवर्तन को प्रकट करने, आत्मसात करने के लिये हर अवसर पर त्योंहार के रूप में मनाते आये हैं यही संस्कृति का निर्माण करते हैं हमारी भारतीय संस्कृति इन्हीं त्योंहारों की परिपाटी रही है ।
लेकिन वर्तमान समय में होली खेतने से बहुत लोगों को डर भी लगने लगा है ऐसा क्यों हो रहा है यह हमें सोचने को विवश करता है और यदि हम मनुष्य हैं तो हमें सोचना भी चाहिये, वर्तमान समय में परेशानी का सबब यह होता जा रहा है कि हमने सोचना ही बंद कर दिया है यह सबसे खतरनाक़ है ।
ताजा घटना दिल्ली में लड़कियों पर होली के बहाने वीर्य के गुब्बारे फेंकना किस सोच को दर्शाता है औकर क्या ये लड़के हमारे उन्हीं घरों के नहीं हैं , जिन घरों की वे लड़कियां हैं क्या इन लड़कों की बहनें नहीं हैं, क्या इन लड़कों के माता पिता नहीं हैं क्या ये लड़कियां जो शिकायत कर रहीं हैं ये अपने भाइयों को टोकती हैं ऐसी वारदातों के समय, बहुत से और भी प्रश्न हैं जिनके जवाब हमें स्वयं से पूछने हैं और बार बार पूछने चाहियें ।
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूँ कि हमारे समाज की सोच में लड़कियों में हो या पुरूषों में अमीर की सोच अलग व गरीब की सोच अलग हो जाती है दिल्ली की बहुतायत लड़कियों को मैट्रो में देखता हूँ कि वे सामाजिक मुद्दों पर विरोध करने वाली लड़कियों का बहुत कम साथ देती हैं क्योंकि वे सोचती हैं की यह विरोध करना,सामाजिक मुद्दों पर बात करना मिडिल क्लास का काम है। उनकी जिंदगी में ऐसे मुद्दों को सहजता से अपना लिया जाता है और विरोध करने वालों को मिडिल क्लास का दर्जा देकर उन्हें ही नीचा दिखाया जाता है अमीरों द्वारा जिस कारण जिन मुद्दों पर सार्थक बातचीत होनी चाहिये वह हो नहीं पाती ।हमें समाज को एक सोच का बनाना होगा। सबसे पहले शिक्षा को एक करना होगा हर वर्ग के बच्चों हर प्रकार के स्कूलों में प्रवेश देना होगा महंगी शिक्षा का समूल निपटान जरूरी है।
सूबे सिंह सुजान
लेकिन वर्तमान समय में होली खेतने से बहुत लोगों को डर भी लगने लगा है ऐसा क्यों हो रहा है यह हमें सोचने को विवश करता है और यदि हम मनुष्य हैं तो हमें सोचना भी चाहिये, वर्तमान समय में परेशानी का सबब यह होता जा रहा है कि हमने सोचना ही बंद कर दिया है यह सबसे खतरनाक़ है ।
ताजा घटना दिल्ली में लड़कियों पर होली के बहाने वीर्य के गुब्बारे फेंकना किस सोच को दर्शाता है औकर क्या ये लड़के हमारे उन्हीं घरों के नहीं हैं , जिन घरों की वे लड़कियां हैं क्या इन लड़कों की बहनें नहीं हैं, क्या इन लड़कों के माता पिता नहीं हैं क्या ये लड़कियां जो शिकायत कर रहीं हैं ये अपने भाइयों को टोकती हैं ऐसी वारदातों के समय, बहुत से और भी प्रश्न हैं जिनके जवाब हमें स्वयं से पूछने हैं और बार बार पूछने चाहियें ।
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूँ कि हमारे समाज की सोच में लड़कियों में हो या पुरूषों में अमीर की सोच अलग व गरीब की सोच अलग हो जाती है दिल्ली की बहुतायत लड़कियों को मैट्रो में देखता हूँ कि वे सामाजिक मुद्दों पर विरोध करने वाली लड़कियों का बहुत कम साथ देती हैं क्योंकि वे सोचती हैं की यह विरोध करना,सामाजिक मुद्दों पर बात करना मिडिल क्लास का काम है। उनकी जिंदगी में ऐसे मुद्दों को सहजता से अपना लिया जाता है और विरोध करने वालों को मिडिल क्लास का दर्जा देकर उन्हें ही नीचा दिखाया जाता है अमीरों द्वारा जिस कारण जिन मुद्दों पर सार्थक बातचीत होनी चाहिये वह हो नहीं पाती ।हमें समाज को एक सोच का बनाना होगा। सबसे पहले शिक्षा को एक करना होगा हर वर्ग के बच्चों हर प्रकार के स्कूलों में प्रवेश देना होगा महंगी शिक्षा का समूल निपटान जरूरी है।
सूबे सिंह सुजान
wecome
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