शुक्रवार, 30 सितंबर 2011
शनिवार, 24 सितंबर 2011
गजल--आज की
हमारे दौर में रहती है भागमभाग जीवन में
कहीं मिलता नहीं है शांतमय अनुराग जीवन में
बिना मतलब अनेकों काम पैदा कर लिये हमने,
जिधर देखो उधर मिसती है जलती आग जीवन में
सूबे सिहं सुजान
कहीं मिलता नहीं है शांतमय अनुराग जीवन में
बिना मतलब अनेकों काम पैदा कर लिये हमने,
जिधर देखो उधर मिसती है जलती आग जीवन में
सूबे सिहं सुजान
रविवार, 18 सितंबर 2011
गजल-17-9-11
हम उनसे पहली दफा मिलके खिलखिलाये बहुत
पर उसके बाद मेरे नैन डबडबाये बहुत
हमारी चाह हमें मौत तक ले जाती है,
समेट लेने की चाहत ने लूट खाये बहुत
नजर तो लौटती है बिन कहे तआकुब में,
जिसे न देखा हकीकत में वो दिखाये बहुत
मुझे मिला है जमाने से खोखलापन सिर्फ,
कदम-कदम पर जो मुझे नीचा दिखाये बहुत
सूबे सिहं सुजान
पर उसके बाद मेरे नैन डबडबाये बहुत
हमारी चाह हमें मौत तक ले जाती है,
समेट लेने की चाहत ने लूट खाये बहुत
नजर तो लौटती है बिन कहे तआकुब में,
जिसे न देखा हकीकत में वो दिखाये बहुत
मुझे मिला है जमाने से खोखलापन सिर्फ,
कदम-कदम पर जो मुझे नीचा दिखाये बहुत
सूबे सिहं सुजान
शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
ताजा गजल
पेड की मोटी जडें जैसे नमी को ढूंढती
चल पडी मिलकर मकानों में किसी को ढूंढती
टूटती हैं सारी दीवारें तुम्हारे प्यार में,
और तुम तो रह गई मुझमें कमी को ढूंढती
दायरे में मेरे दिल की आग के जो कैद है,
वो भटकती याद है जो प्रेयसी को ढूंढती
जिंदगी को गुनगुनाना देखिये आसां नहीं,
आ गई कोने में बिल्ली छिपकली को ढूंढती
आसमाँ में धूल का बादल दिखाई देता है,
धूप पागल हो गई अपनी जमीं को ढूंढती
खत्म हो सकती नहीं शायद खुशी की जुस्तजू,
कल मिली थी जिंदगी पागल खुशी को ढूंढती
सूबे सिहं सुजान
चल पडी मिलकर मकानों में किसी को ढूंढती
टूटती हैं सारी दीवारें तुम्हारे प्यार में,
और तुम तो रह गई मुझमें कमी को ढूंढती
दायरे में मेरे दिल की आग के जो कैद है,
वो भटकती याद है जो प्रेयसी को ढूंढती
जिंदगी को गुनगुनाना देखिये आसां नहीं,
आ गई कोने में बिल्ली छिपकली को ढूंढती
आसमाँ में धूल का बादल दिखाई देता है,
धूप पागल हो गई अपनी जमीं को ढूंढती
खत्म हो सकती नहीं शायद खुशी की जुस्तजू,
कल मिली थी जिंदगी पागल खुशी को ढूंढती
सूबे सिहं सुजान
गुरुवार, 8 सितंबर 2011
दादी की कहानी
दादी की कहानी मुझे सपनों में मिलती है
कुछ अपनी निशानी मुझे सपनों में मिलती है
माँ-बाप को मैं भूल गया जब बडा हुआ,
अब अपनी जवानी मुझे सपनों में मिलती है
तूफान उठाती है पसीना ले आती है,
इक याद पुरानी मुझे सपनों में मिलती है
सूबे सिहं सुजान
कुछ अपनी निशानी मुझे सपनों में मिलती है
माँ-बाप को मैं भूल गया जब बडा हुआ,
अब अपनी जवानी मुझे सपनों में मिलती है
तूफान उठाती है पसीना ले आती है,
इक याद पुरानी मुझे सपनों में मिलती है
सूबे सिहं सुजान
गजल-12-
गजल-12-( सीने में आग ) गजल संग्रह से----
जुर्म कोई भी छुपाया नहीं जाता मुझसे
झूठ का बोझ उठाया नहीं जाता मुझसे
खून के आंसू जब आयें हों मेरे होठों पर,
मुस्कुराहट को सजाया नहीं जाता मुझसे
याद आती है तेरी सादगी,तेरी मुस्कान,
तेरी बातों को भुलाया नहीं जाता मुझसे
जिन चिरागों ने मुझे जलना सिखाया यारो,
उन चिरागों को बुझाया नहीं जाता मुझसे
मैं बहुत रोया हूँ दुनिया के सितम सह-सहकर,
दिल किसी का भी दुखाया नहीं जाता मुझसे
सूबे सिहं सुजान
जुर्म कोई भी छुपाया नहीं जाता मुझसे
झूठ का बोझ उठाया नहीं जाता मुझसे
खून के आंसू जब आयें हों मेरे होठों पर,
मुस्कुराहट को सजाया नहीं जाता मुझसे
याद आती है तेरी सादगी,तेरी मुस्कान,
तेरी बातों को भुलाया नहीं जाता मुझसे
जिन चिरागों ने मुझे जलना सिखाया यारो,
उन चिरागों को बुझाया नहीं जाता मुझसे
मैं बहुत रोया हूँ दुनिया के सितम सह-सहकर,
दिल किसी का भी दुखाया नहीं जाता मुझसे
सूबे सिहं सुजान
शनिवार, 3 सितंबर 2011
गजल-11
क्या हुआ देख भावनाओं का
हो गया खून कल्पनाओं का
जड बने अब विचार लोगों के,
युग गया बीत चेतनाओं का
हो गया हूँ शिकार फिर देखो,
जिन्दगी में विडम्भनाओं का
कातिलों की शरण बने मंदिर,
कुछ नहीं लाभ वन्दनाओं का
गर्म लोहा उठा ले हाथों में,
मत मना रोष यातनाओं का
प्यार का देवता सिहरता है,
हो रहा मान वासनाओं का
प्रेम गायक सुजान ही होगा,
नव सृजनशील योजनाओं का
सूबे सिहं सुजान
09416334841
कुरूक्षेत्र
e- mail-subesujan21@gmail.com
हो गया खून कल्पनाओं का
जड बने अब विचार लोगों के,
युग गया बीत चेतनाओं का
हो गया हूँ शिकार फिर देखो,
जिन्दगी में विडम्भनाओं का
कातिलों की शरण बने मंदिर,
कुछ नहीं लाभ वन्दनाओं का
गर्म लोहा उठा ले हाथों में,
मत मना रोष यातनाओं का
प्यार का देवता सिहरता है,
हो रहा मान वासनाओं का
प्रेम गायक सुजान ही होगा,
नव सृजनशील योजनाओं का
सूबे सिहं सुजान
09416334841
कुरूक्षेत्र
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