शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

भावनाओं से व्यापार करना कानूनी जुर्म घोषित होना चाहिए

 जीवन शैली में सभ्यता , संस्कृति व धर्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसके पश्चात संविधान व कानून का योगदान आया है लेकिन यदि संविधान का प्रयोग अलग अलग व्यक्तियों के लिए उनकी अलग-अलग मान्यता के लिए जानबूझकर साज़िश के तहत किया जाने लगता है तो संविधान का उल्लंघन भी जानबूझकर किया जाता है तो संविधान का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।

और जब किसी एक पक्ष की जानबूझकर की गई गल्तियो में दूसरे पक्ष को भी शामिल करके अपनी बात कहना व प्रचारित करना भी एक तरह का जुर्म है और यह जुर्म अर्थात यह बात इस तरह कहना साजिशतन सिखाया जाए तो यह संविधान व कानून में अपराध श्रेणी में शामिल करके सजा दिया जाना चाहिए न कि उनकी भावनाओं की बात व विचारों की स्वतंत्रता कह कर टाल दिया जाए क्योंकि आप दूसरे पक्ष को जानबूझकर बात में हिस्सा बना कर जुर्म करने वाले के पक्ष को कमजोर करके उसे बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

जब कश्मीर में भारत के राज् चिन्ह अशोक चक्र जो हटाया, तोड़ा, जलाया जाता है जो कि बरसों से पहले वहां पर अंकित है तो उसके अपराध में उन अपराधियों को सीधा अपराधी न कह कर ,उनकी बात के बीच में दूसरे पक्ष को ले आते हैं, जिसका कोई तर्क नहीं है तो आप जुर्म करने वाले पक्ष को जानबूझकर बचाने की साज़िश कर रहे हैं।

ऐसा भारत की अदालतों में अक्सर हमारे वकील,जज लोग करते हैं और इसी तरह मीडिया भी सरेआम अपने विचारों की स्वतंत्रता का सहारा लेकर दूसरे पक्ष पर अपने विचार जबरदस्ती थोपते हुए उसे घसीट लेते हैं यह वास्तव में एक साज़िश का पहलू होता है।




सूबे सिंह सुजान 

सोमवार, 25 अगस्त 2025

वर्षा ऋतु अपने उतरार्द्ध में अधिक यौवना हो गई है।

 ऐसा भी लगता है कि वर्षा ऋतु अपने उतरार्द्ध में अधिक यौवना हो गई है जहां जहां अभी तक पेड़ पौधे,बेलें,घास आदि प्यास से मर रहे थे और उदासीनता को अपना गहना समझ रहे थे उदासी में कभी-कभी गंभीरता दिखाई पड़ती थी और गंभीरता देखने में विचारवान लगती थी और इस बौद्धिकता का पुट वर्षाकाल में भी वर्षा ऋतु का बिछोह था।

वर्षा अपने अंतिम पड़ाव में जब उम्र के निकलने, आनंद के अधूरेपन को लेकर चिंतित हो उठी तो सहसा टूट कर बरसने लगी है और पेड़ पौधे ये गिलोय की बेल तो अच्छे से समझती है जब गिलोए की बेल को पेड़ नहीं मिले तो वह बिजली के खंभे के साथ लिपट जाती है आधुनिकता वनस्पति को विवशता में अपनानी पड़ती है लेकिन मनुष्य आहत हो उठता है वह वर्षा ऋतु की इच्छाओं को सहन नहीं कर पाते हैं वह वर्षा में टूटने वाले पहाड़ों को प्रकृति की विनाशलीला का नाम देते हैं और वर्षा ऋतु के गुजरने के पश्चात उन्हीं पहाड़ों में बम लगा कर उन्हें तोड़ते हैं।

वर्षा ऋतु को अपनी प्यास भी बुझानी है और प्रकृति के हर कण तक भी पहुंचना है यदि कहीं पर वह न पहुंच सके, फ़सल अच्छी नहीं हुई तो मनुष्य उसे भला बुरा कहते हैं यदि वह अपने मन भर बरस जाए तो उसे भला बुरा कहते हैं नदियों के रास्तों में घर बना कर उसका रास्ता रोक लेते हैं और जब वर्षा ऋतु उसे बहाकर लाए तो भगवान को गालियां देते हुए रोते हैं मनुष्यों से अच्छे पेड़ पौधे व वनस्पति हैं वह उगने, टूटने पर भी वर्षा से प्रेम करते हैं कोई शिकायत नहीं करते हैं अपना अहोभाग्य समझकर उसमें तत्लीनता से समाहित हो जाते हैं।


सूबे सिंह सुजान 

#वर्षा #ऋतु 



गुरुवार, 7 अगस्त 2025

कवियों का चुटकुले सुनाना कवि होने पर सवाल खड़े करता है सूबे सिंह सुजान

 कवि सम्मेलन में जो लोग चुटकुले सुनाते हैं वह स्वयं ताली बजाने के लिए भी कहते हैं और जो लोग उनकी बात मान लेते हैं अर्थात अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया और सुनकर हँसते हैं एक तो जो व्यक्ति चुटकुले सुना रहा है वह स्वयं को कवि बता रहा है जबकि वह कवि नहीं है और हम सब जो वह कह रहा है वह मान लेते हैं इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है कि वह व्यक्ति चुटकुले ऐसे सुनाता है कि उनमें कहीं भी कोई बात,तथ्य, विचार,तर्क,संभावना नहीं है सिर्फ वह फुहड़ता,गाली, लड़कियों व लड़कों के जननांगों पर गाली द्विअर्थी संवाद में देते हैं और लड़कियां वहां बैठी हुई बहुत हंसती हैं वह ख़ासतौर पर औरतों पर नंगेपन के चुटकुले सुनाते हैं और हम बिना समझे हंस रहे हैं।

हास्य-व्यंग्य बहुत सकारात्मक और सटीक विधा है आप हास्य व्यंग को कबीरदास,दुष्यंत कुमार,धूमिल और न जाने कितने असंख्य शायरों की शायरी में देख सकते हैं लेकिन उनमें कहीं भी फुहड़ता,नंगापन नहीं है लेकिन अत्यधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि हम वही लोग वहां बैठकर कैसे हंस लेते हैं जो हमारे ऊपर, हमारी संस्कृति, संस्कार, विश्वसनीयता पर हमला होता है हमें उसको सहन ही नहीं करना था लेकिन हम हंस रहे हैं?


कवि वह होता है जो काव्य के माध्यम से आपकी बुद्धि का योग करवाता है जो आपकी बुद्धिमत्ता को प्रखर करता है आपकी बुद्धि को खेल खिलाता है ताकि वह स्वस्थ रहे

और इसके लिए नये विचार या पुनः विचारों को अभ्यास में लाना या बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना होता है सामाजिक,देशकाल, व्यवहार, प्रेम, मनोरंजन, श्रृंगार,सदाचार, भक्ति,जीवनशैली,जीवन तत्वों के बारे सटीक बौद्धिकता को जागरूक करता है। 

यदि हम कुछ समय के लिए उच्च विचार विमर्श को सुनना शुरू करेंगे तो हमें उसमें आनंद भी आएगा और ज्ञान अर्जित भी होगा। उच्चता, श्रेष्ठता को समझने में आनंद है जो उच्च बुद्धिजीवी होते हैं वह गहरी अर्थपूर्ण कविता, ग़ज़ल, कहानी को सुनना व कहना पसंद करते हैं जो लोग केवल गंदे चुटकले पर हंसते हैं या सुनाते हैं वह दोनों प्रवृति के लोग निम्न चरित्र को अपनाना और प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।


सूबे सिंह सुजान 


हिंदी पर मुसलसल ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान

 हिंदी पर मुसलसल ग़ज़ल -


अपना स्वदेश भाव हिंदी में 

एकता का बहाव हिंदी में।

देश में रोज़गार या व्यापार,

और ही और बढ़ाव हिंदी में।

दादा, माता पिता बहन भाई, 

प्रेम, संबंध चाव हिंदी में।

सारी भाषाओं की यही सिरमौर,

जोड़ने का लगाव हिंदी में।

मन वचन कर्म भारतीय रही 

ऐतिहासिक रखाव हिंदी में।

भावनाओं का एक संगम है,

शत्रुता का अभाव हिंदी में।

कुल की रक्षा सदैव करती है,

चौधरी का दबाव हिंदी में।

देश भारत को जोड़ने का है,

सबसे ज़्यादा प्रभाव हिंदी में।


सूबे सिंह सुजान



शनिवार, 5 जुलाई 2025

वायु की दिशाएं रोग व निदान तय करती हैं।

 वायु की दिशाएं रोग व उनके निदान तय करती हैं।


एक भारतीय किसान हवा के दिशाओं की ओर से बहने के लाभ व हानि को सदियों से जानते हैं और उनका अपनी फसलों के लिए प्रयोग करते आए हैं ।

जैसे पश्चिमी दिशा से बहने वाली वायु मनुष्य ही नहीं सभी फ़ैसलों, वनस्पति और पृथ्वी पर सभी प्राणियों को स्वास्थ्य प्रदान करती है और वहीं पूर्व दिशा की वायु इसके विपरित रोग को,रोग पैदा करने वाले कीट को पैदा करती है।

यह सब किसान बेहतर जानते हैं और यह उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा गया है यह प्रकृति की प्रक्रिया के साथ आत्मसात होकर सीखा जाता है यह अत्यधिक समर्पण द्वारा सिद्ध होता है। यह विज्ञान ही तो है जिसे किसान अपने जीवन में प्रयोग करते रहे हैं।

यह उनकी शिक्षा ही है तो क्या हम केवल अंग्रेजी मानसिकता से दी गई शिक्षा को सब कुछ क्यों मानते हैं वह तो पृथ्वी, प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का ज्यादा काम करते हैं हम सनातन को समझें यह सनातन संस्कृति के कार्य प्रकृति प्रदत्त हैं जो सदैव रहेंगे।

सूबे सिंह सुजान 

#हवा #वायु #रोग #निदान 


चित्र में सूबे सिंह सुजान अपने स्कूल के बच्चों के साथ पौधा लगाते हुए।

रविवार, 29 जून 2025

लेखकों की कामुकता के किस्से बहुत प्रचलित हैं। सुशोभित

 मैं जब भी इस तरह के वाक्य सुनता हूँ तो अचरज में पड़ जाता हूँ कि "साहित्यकार होकर भी ऐसा लम्पट-कृत्य?" 


तब मेरे मन में प्रश्न उठता है कि आपसे कहा किसने था कि साहित्यकार लम्पट नहीं होगा? साहित्य और सच्चरित्र में क्या को-रिलेशन है?


साहित्यकार वह होता है, जो कल्पनाशील हो, विचारशील हो, अध्येता हो, जिसको लिखना आता हो, कहानी सुनाना, बातें बनाना आता हो। इनमें से किसी भी गुण का सम्बंध इंद्रिय-संयम या ब्रह्मचर्य या चरित्रगत-निष्ठा से नहीं है। उलटे इस बात की सम्भावना अधिक है कि साहित्यकार या कलाकार का चरित्र साधारणजन से भी क्षीण हो।


कारण, साहित्यकार की कल्पनाशीलता उसे और ऐंद्रिक बनाती है। अपनी ऐंद्रिकता से वह और निष्कवच (वल्नरेबल) हो जाता है। अगर वह चरित्रगत रूप से दृढ़ भी हो, तो सोने पर सुहागा है, और वांछनीय है! किन्तु अपेक्षित नहीं है। यह गुण किसी योगी से अपेक्षित हो सकता है, साहित्यकार से नहीं।


लेखकों की कामुकता के किस्से बहुत प्रचलित हैं। अज्ञेय की सेक्शुएलिटी बहुत विचित्र थी। अक्षय मुकुल ने उनकी जो जीवनी लिखी है उसमें उसके ब्योरे दिए हैं। 'शेखर एक जीवनी' में भी सघन कामुकता की एक अंतर्धारा सर्वत्र व्याप्त है। श्रीनरेश मेहता ने आधुनिक गीत-गोविन्द कहलाने वाला काव्य ('तुम मेरा मौन हो') केवल कल्पना से ही नहीं लिख दिया है। शमशेर के यहाँ जो तीखी सेंसुअसनेस है, वह महज़ भाषाई नहीं है। इस बारे में अधिक जानने के लिए मलयज को पढ़ें। चन्द्रकान्त देवताले ने एक बार निजी चर्चाओं में मुझे बतलाया था कि उन्होंने विदेश से भारत लौटे एक बड़े लेखक को एक स्त्री के सम्मुख अभद्र प्रस्ताव रखते देखा था। मैं यहाँ नाम नहीं लिखना चाहता, किन्तु कम से कम दो ऐसे लेखकों के बारे में मुझे ज्ञात है, जिन्होंने कन्या महाविद्यालय का संचालन कर रहे व्यक्तियों से अनुचित 'आपूर्ति' की माँग की थी। राजेन्द्र यादव, आलोक धन्वा, धर्मवीर भारती, शिवमंगल सिंह सुमन के नाम से प्रचलित किंवदंतियों के बारे में कुछ ना कहूँ तो ही बेहतर, पाठक बेहतर जानते होंगे।


यह तो मैंने हिन्दी लेखकों की बातें कहीं, विश्व में बायरन, तोलस्तोय, नेरूदा, मार्केज़, पिकासो, हिकमत, लोर्का, डाली आदि लेखकों-कलाकारों के जीवन-वृत्तांत आप पढ़ेंगे तो पाएँगे कि स्त्री-संयम के मामले में उनमें से कोई भी साधु नहीं था। उलटे सच्चाई इसके विपरीत थी। इनमें से कुछ तो दुर्निवार व्यभिचारी थे। रोमन पोलंस्की पर एक माइनर के साथ यौन-दुराचार का मुक़दमा चला था और उसके बाद भी उन्हें ऑस्कर पुरस्कार दिया गया था!


मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि लेखक-कलाकार के अपराध क्षम्य हैं। उलटे, मेरा प्रस्ताव है कि अगर कोई लेखक-कलाकार होकर भी अपराध करता है तो उसे उसी अपराध के लिए किसी साधारणजन को दी जाने वाली सज़ा से अधिक सज़ा दी जाए, क्योंकि उसमें किसी के विश्वास-भंग का नैतिक-अपराध भी सम्मिलित हो सकता है। किन्तु आपको समझना होगा कि किसी लेखक-कलाकार का अतिशय कामुक होना आपको असहज भले करता हो, वह अपराध नहीं है।


बलात्-चेष्टा अपराध है, यौन-प्रस्ताव रखना अपराध नहीं है। 


दबाव या भयादोहन से या विवशता का लाभ उठाकर बनाया गया सम्बंध अपराध है, किन्तु किसी पुरुष-लेखक का स्त्री में यौन-रुचि रखना अपराध नहीं है।


हाँ, अगर कोई श्रेष्ठ लेखक-कलाकार ऊँचे चरित्र वाला, दृढ़-प्रतिज्ञ, इंद्रिय-निरोधी भी हो तो उसकी गरिमा और बढ़ जाती है। किन्तु- दुर्भाग्य से- वैसे उदाहरण विरल ही हैं। और भला लगे या बुरा- एक कलाकार के रूप में किसी रचनाकार की श्रेष्ठता का निर्णय अन्तत: उसके कृतित्व से ही किया जाएगा, उसके चरित्र से



नहीं!


Sushobhit


गुरुवार, 26 जून 2025

प्रणय निवेदन करना पुरुष का अधिकार है। सुशोभित

 प्रणय-निवेदन करना पुरुष का स्वाभाविक अधिकार है! जब तक कि उसमें




दबाव न हो, भयादोहन न हो, विवशता का लाभ उठाने की भावना न हो, बलात्-चेष्टा न हो। वह अपने नाम के अनुरूप ही एक 'निवेदन' हो!


और उस निवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर देना स्त्री का अधिकार है!


ये दोनों अधिकार एक साथ अपनी गरिमा और चाहना के आवरण में अस्तित्व में रह सकते हैं, इन दोनों ही अधिकारों को उन दोनों से छीना नहीं जा सकता।


अलिखित शर्त यही है कि पुरुष की प्रणय-याचना सुघड़, सुधीर, संयत और इसके बावजूद ऐंद्रिक, काव्योक्त और तीक्ष्ण हो! 


प्रणय-निवेदन कितना सुंदर है, स्त्री की कल्पनाओं में यह भी सम्मिलित होता है, रतिकेलि और संसर्ग तो ख़ैर होते ही हैं।


स्त्री कहती है- "मैं जानती हूं तुम क्या चाहते हो। किंतु उसे ऐसे कहकर दिखलाओ कि रीझ जाऊं!"


और तब, अगर पुरुष धीरोदात्त है, नायक है, सुशील है, तो स्त्री के समर्पण को अर्जित करने का यत्न करता है, ठीक वैसे ही, जैसे किसी पुरुष को करना चाहिए।


स्त्री और पुरुष के बीच धधकती हुई कामना की यह चेष्टा इतनी सुंदर है कि यह काव्य रचती है, शिल्प रचती है, संगीत रचती है, सृष्टि की संसृति वैसे ही हुई है, ब्रह्मांड का विस्तार इसी रीति से सम्भव हुआ है।


पुरुष को स्त्री की सम्मति के प्रवेशद्वार पर खड़े होकर प्रतीक्षा करनी होती है, जितनी अनुमति वह देती है, उतना ही उसके भीतर प्रवेश करना होता है। इस नियम का उल्लंघन सम्भव नहीं।


हर वो बलात्-चेष्टा, जो इस मर्यादा को लांघती है, अपराध है। नैतिक अर्थों में ही नहीं, बल्कि सौंदर्यशास्त्रीय अर्थों में भी। 


किसी भी रीति का अनधिकार प्रवेश बलात्कार की ही पूर्वपीठिका है। 


लौकिक साधनों से अगर स्त्री के हृदय में प्रवेश की कुंजी मिल सकती तो आज हाट में बेभाव बिक रहे होते प्रेम, सघन-कामना, स्फूर्त-रतिचेष्टा और परम-संतोष की आदिम-कंदराएं!


और स्मरण रहे कि प्रणय-निवेदन या यौन-प्रस्ताव पर पुरुष का एकाधिकार नहीं है, स्त्री भी यह निःसंकोच होकर कर सकती है। करती ही है! प्रगाढ़ अनुभवों से कहता हूं!


स्त्री और पुरुष के परस्पर से ही रति-चेष्टाओं और यौन-क्रीड़ाओं का परिसर सुशोभित होता है, बलात्-चेष्टा के किसी प्रसंग से इस परस्पर को कलंकित करना स्वयं के विरुद्ध विद्रोह करना ही कहलाएगा!


Sushobhit


शनिवार, 19 अप्रैल 2025

हमाम में सब नंगे हैं।यह जुमला बड़ा झूठ है।

*हमाम में सब नंगे???
यह जुमला बहुत बड़ा झूठ है*

दरअसल यह जुमला अपने आप को बचाने के लिए ही कहा गया होगा।
कैसे सबको एक जैसा कह सकते हैं ऐसा कभी नहीं होता।
सब एक जैसे न शक्ल से,काम से,दिल से नहीं हो सकते।
यह झूठ को प्रचारित करने व अपने ग़लत काम पर पर्दा डालने के लिए बोला जाता है।
सब एक जैसे किसी जगह पर नहीं हो सकते, किसी काम में नहीं हो सकते।
लेकिन यह जुमला वही लोग ज़्यादा कहते पाए जाते हैं जो खुद ग़लत काम करते हैं और ग़लत को प्रोत्साहित करते हैं व सच को, अच्छे आदमी को दबाते हैं वह एक सच्चे व्यक्ति पर भी जानबूझकर आरोप लगाते हैं ताकि उनके जुर्म छुप सकें उनका झूठ सामने न आए और लोग आपस में बहस करते रह जाएं वह बच कर निकल जाए।
नकारात्मकता यही काम करती है वह सकारात्मकता को भी उलझन में डाल देती है और ईमानदार निष्ठावान लोग अपने आपको साबित करने में लग जाते हैं और बेईमान लोग कभी इसकी परवाह नहीं करते वह जानते हैं ईमानदार अपनी ईमानदारी के चक्कर में रह जाएंगे और उसको बचने का मौका मिल जाएगा।

जो लोग यह कहते हैं कि हमाम में सब नंगे हैं वह झूठ को छुपाने व सच को दबाने के लिए ऐसा करते हैं।

सूबे सिंह सुजान