गुरुवार, 9 जनवरी 2025

बौद्ध दर्शन उच्च आदर्श के बावजूद कायरता व अमानवीय बनकर रह गया है

 महात्मा बुद्ध का दर्शन मानवता को शांति प्रदान करने के लिए ही है लेकिन उस दर्शन को केवल सनातन संस्कृति, हिन्दू समाज ने अपनाया था जिस कारण यह समाज बिल्कुल शांतिप्रिय हो गया और हथियार युद्ध त्याग कर वर्षों ऐसा रहने से हथियार, लड़ना सब भूल गया और रेगिस्तान देशों से मुगल आए और इन सनातन संस्कृति के शांतिप्रिय लोगों को लगातार मारते रहे इनके देश पर कब्जा कर लिया इनकी संस्कृति को बदल दिया लेकिन महात्मा बौद्ध का दर्शन इनके दिमाग पर अब तक छाया है इनका मोह भंग नहीं हुआ यह परिणाम विश्व ने शांति को अपनाने का दिया और यह मानवता को मरने के लिए तैयार महात्मा बौद्ध ने किया था।

उस समय अनुसार बुद्ध ने तो सर्वोत्तम ज्ञान दिया है लेकिन वही ज्ञान भारतीय संस्कृति के लिए अभिशाप बन गया है जिस तरह पेट में कई बार अच्छा भोजन भी असमय करने पर विषैला हो जाता है और शरीर को अस्वस्थ कर देता है उसी प्रकार बुद्ध का उच्च दर्शन भी उनके भविष्य में भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने का कारण बन गया है।

प्रकृति अपने संचालन बनाए रखने के लिए हर चीज़ का संतुलन चाहती तभी जीवन है और यह संघर्षशीलता में ही जीवन है शिथिलता या तीव्रता, दोनों परिस्थितियों में यह नष्ट होता है और महात्मा बुद्ध भी जीवन को असंतुलित करते हैं।

सत्य ज्ञान केवल श्रीमद्भागवत गीता में ही है कृष्ण भगवान जीवन में संघर्षरत हैं और संघर्षों की शिक्षा देते हैं यही सत्य सनातन संस्कृति का ज्ञान है यही प्रकृति का यथार्थ ज्ञान है।


मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

बच्चों के साथ शिक्षक का अनैतिक आचरण

 एक समय में एक शिक्षक प्रार्थना सभा में छोटे छोटे बच्चों के सामने किसी अन्य शिक्षक की कक्षा के बच्चों से जानबूझकर कभी जातीय,कक्षीय,मेरी बात नहीं मानी,समय पर नहीं आए, नाखून नहीं कटे हैं(जबकि उसकी अपनी कक्षा में सब कमियां होती थी और उनमें न होकर भी निकाल दी जाती थी) ऐसे अनेकों भेदभाव करता था और अन्य शिक्षक जो उसकी बातों को, भेदभाव को देखकर हंसने लगते थे,यह जानते हुए भी कि इन बच्चों का कोई कसूर नहीं है वह जो यह अनैतिक आचरण कर रहा था वह तो दोषी था ही लेकिन जो यह सुनकर हंस कर उसका समर्थन करते थे वह ज्यादा मूर्खतापूर्ण और अपराध कर रहे थे।

हालांकि उसके इस दुर्व्यवहार, अनैतिकता पर वहां उपस्थित शिक्षकों से ज्यादा गहराई से वह बच्चे समझ रहे होते हैं जिनके साथ वह दुर्व्यवहार हो रहा था समय अपने आप में परिवर्तन लाता है और वह उन बच्चों के माध्यम से ही आता है।

एक शिक्षक से ऐसे आचरण की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए थी लेकिन तंत्र इस प्रकार का है ऐसे ही शिक्षकों को अधिकारी वर्ग समर्थन करते हैं उन्हें हर प्रकार के भेदभाव करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं इस प्रकार समाज का ढांचा बिगड़ जाता है और झूठ, अनैतिकता, अव्यवहारिकता को बल मिलता है


ग़ज़ल - लोग अच्छे,बुरे निकलते हैं।

 हर तरफ रास्ते निकलते हैं 

पूछ कर आपसे निकलते हैं।


हम जहां भी गये जमाने में,

आपके ही पते निकलते है।


प्यार की टहनियां हरी रहती,

रोज़ पत्ते नये निकलते हैं।


सब ज़रूरत में काम आयेंगे,

लोग अच्छे,बुरे निकलते हैं।


जिनको छोटे समझ के बातें की,

वो ही हमसे बड़े निकलते हैं।


वो तमाशा या हो लड़ाई भी,

हर कोई, देखने निकलते हैं।


🤭


सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

कपल केस बनाम सिंगल कर्मचारियों की पत्नियाँ


 सरकारी कर्मचारियों के विभाग में कार्यरत कुछ कर्मचारियों की पत्नियां भी उसी या अन्य विभागों में जब कार्यरत थी और उनके साथ कुछ कर्मचारी ऐसे थे जिनकी पत्नी घरेलू महिला हैं अर्थात वह सरकारी कर्मचारी नहीं थी।

एक दिन उनमें से एक कर्मचारी के बेटे की शादी का माहौल कुछ इस प्रकार देखने को मिला। जिन कर्मचारियों की पत्नियां भी सरकारी कर्मचारी थी वह दूसरे कर्मचारी की वह पत्नियां आपस में गले लग कर व अत्यधिक गर्मजोशी से मिलती हैं और उन कर्मचारियों की पत्नियां जो घरेलू हैं उनसे केवल औपचारिकता नमस्कार करते ही आगे निकल लेती हैं जैसे कुछ देर पास खड़े होने से कोई बीमारी न चिपट जाए और फिर वह आपस में एक दूसरे के पतियों हल्की सी बात करके फिर अपना विषय उन कर्मचारियों पर कस लेती हैं जो उनके विभाग में सिंगल होते हैं और उनकी पत्नियों पर हेय दृष्टि डालते हुए कहती हैं यह तो जानवरों जैसी है इसको कुछ नहीं पता, दूसरी कहती है इन्हें क्या पता समाज में कैसे मिलते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं, तीसरी कहती है छोड़ो यार मूर्ख हैं यह तो आओ मज़े लेते हैं और फिर वह अपने विभाग के सिंगल कर्मचारियों की कमियां आपस में गिनाना शुरू करती हैं अमुक बिल्कुल मूर्ख है कुछ काम नहीं करता और रोज़ किसी न किसी काम के बहाने बाहर जाता रहता है पता नहीं रोज़ दफ्तरों में इतने काम होते हैं या नहीं दूसरी बोलते हुए कहती है हमारे पास तो एक अकेला पुरुष कर्मचारी है बाकी हम सारी महिलाएं हैं वह बुद्धू है हम तो उसके मज़े लेते हैं हर काम उससे करवाते हैं और खूब मज़े करते हैं उसको पता भी नहीं चलता हम कितने बहाने बनाते हैं और वह पागल सारे काम करता रहता है तभी तीसरी बोलते हुए कहने लगी अरे कुछ नहीं आता इनको मैं तो अपने हैसबै्ड को कह देती हूं कभी किसी महिला की बातों में न आया करो यह पुरुष को पागल बना कर काम करवाती हैं आप इनके झांसे में मत आना और वह हंसते हुए अपने बहुत कम कपड़ों को प्रदर्शित करते हुए शादी में सबसे आधुनिक होने का दंभ भरते हुए जानबूझकर कूल्हे मटकाती हुई सबसे आगे चलते हुए नाचने को कहती है।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

घर का जोगी जोगना बाहर का जोगी सिद्ध। अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव कुरूक्षेत्र

 हरियाणा भर से कुरूक्षेत्र में पधारे सभी सम्मानित साहित्यकारों को मैं हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।

जहां कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड कुरूक्षेत्र अनेकों कार्यक्रम बाहरी कलाकारों, कवियों को लाखों, करोड़ देकर करता है वहीं कुरूक्षेत्र की साठ वर्ष पुरानी साहित्य संस्था को दरकिनार करता है अर्थात घर का जोगी जोगना बाहर का जोगी सिद्ध।

यह कहावत सिद्ध होती है चाहे समाज में कोई कितना समझदार, पढ़ा लिखा हो लेकिन यह कहावत सटीक बैठती है।

एक तरफ धरती पर काम करने वाले साहित्यकारों का गीता काव्य पाठ कार्यक्रम कैंसिल करवा कर दंभ भरने वाला कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड कुरूक्षेत्र प्रसन्न होता है वहीं दूसरी ओर जिन कलाकारों या कवियों का कुरूक्षेत्र भूमि से कोई नाता नहीं उनको लाखों पूजता है यहां तक तो ठीक था कि आप किसी को कुछ दें,किसी को बुलायें लेकिन कुरूक्षेत्र के साहित्यिक संस्था, साहित्यकारों का अपमान करने का अधिकार आपको किस आधार पर मिला???

आप स्वयं हरियाणा साहित्य अकादमी।

हरियाणा संस्कृति अकादमी के संचालक हैं और आप स्वयं उनका अपमान भी करें?

आप किस समझ के व्यक्तित्व हैं?

क्या भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यही कहा है?

उर्दू प्रकोष्ठ का मुशायरा कैंसिल करवा कर सत्य या गीता का मान किया है?



हमारे जो नाम के बड़े साहित्यकार हैं वह केवल रूपए लेकर कार्यक्रम करने तक सीमित हैं वह कभी समाज से वास्ता नहीं रखते?

वह न कभी किसी कार्यक्रम को करने की पहल तक करते हैं वह केवल अपने पैसे,जेब,और समय का ध्यान रखते हैं।

समाज, साहित्य व साहित्यकार के पक्ष में खड़े होने से उन्हें को मतलब नहीं होता



हमारे साहित्य के बड़े-बड़े नाम जितने साहित्य में पूजे जाते हैं वह कभी समाज, साहित्य के पक्ष में बोल नहीं सकते वह बहुत ज्यादा डरपोक श्रेणी में जीवन यापन करते हैं और वह केवल स्वार्थवश करते हैं।


वास्तविक स्थिति

मंगलवार, 26 नवंबर 2024

दर्द के पत्थर

 दर्द के बारीक टुकड़े टुकड़े कर देना,

वरना ये पत्थर उठाये ही नहीं जाते।


सूबे सिंह सुजान


गुरुवार, 21 नवंबर 2024

बांटते बांटते हुए लोगो।

 दफ़्तरों में दबे हुए लोगो।

कब उठोगे,मरे हुए लोगो।


एक दीवार तो खड़ी है अभी,

कुछ करो,कुछ बचे हुए लोगो।


चापलूसी को काटो, बढ़ती है,

बोलिए,देखते हुए लोगो।


तुम कहीं जा के सो न पाओगे,

भागते भागते हुए लोगो।


कैसे खामोश हो गए सारे?

बोलते बोलते हुए लोगो ।


अब तुम्हें वक्त ख़त्म कर देगा,

बांटते बांटते हुए लोगो।


सूबे सिं



ह सुजान

मंगलवार, 5 नवंबर 2024

नमामि गंगे नमामि गंगे। गंगा नदी पर गीत।

 नमामि गंगे नमामि गंगे, नमामि गंगे नमामि गंगे।

तुम्हारी कृपा से जी रहे हैं ,

हर एक तन में तुम्हारा जल है।

तुम्हीं तो जीवन बना रही हो,

तुम्हीं से कल था, तुम्हीं से कल है।


कहीं पे मछली कहीं मगरमच्छ ,

कहीं पे मेंढक उछल रहे हैं।

हजारों लाखों करोड़ों जीवन,

तुम्हारी गोदी में पल रहे हैं।


जटा से शिव की हुई प्रवाहित 

लहर लहर सी लहर गई हैं 

असंख्य नाले असंख्य नहरें,

इधर गई हैं उधर गई हैं।



सूबे सिंह सुजान 


राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक विद्यालय हथीरा, कुरूक्षेत्र, हरियाणा 


E mail - subesujan21@gmail.com 


Mo



bile number 9416334841