गुरुवार, 6 नवंबर 2025

अमेरिका, यूरोप का कम्युनिस्ट विचारधारा नामक सांप अब उनको डंसने लगा है।

 आचार्य चाणक्य ने कहा था कि जब दुश्मन अपने सर्वनाश की तरफ क़दम उठाए तो उसे रोकना, टोकना नहीं चाहिए उसके काम में व्यवधान नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह इतना उग्र हो जाएगा कि उसका सर्वनाश उसके कर्म करते हैं इसी प्रकार कम्युनिज्म ने पूरी दुनिया में आतंकवाद को पाला पोसा है कम्युनिस्ट कभी भी मुस्लिम मज़हब की जघन्य कृत्यों और कुरीतियों पर कभी एक शब्द नहीं कहते लेकिन हिन्दू धर्म, समाज, संस्कृति के विरोध में झूठे लेख लिखते हैं और एजेंडे चलाते हैं समाज को जातियों में, धर्म के नाम पर बांटते हैं लोगों में अफवाहें फैला कर उनके खिलाफ दुनिया से धन इकट्ठा करके लालच देकर उन्हें उनके ही देश, परिवार के विरुद्ध खड़ा करते हैं 

दुनिया में यूरोप और अमेरिका ने कम्युनिस्ट को पाला है और भारत में कांग्रेस ने पाला पोसा है और आज यही कम्युनिस्ट विचारधारा से पाले गए मुस्लिम मज़हब की कट्टरता इतनी हावी हो चुकी है कि यूरोपीय देशों में आतंकवाद को बढ़ावा दिया है और अब अमेरिका के अंदर दख़ल दे दिया है अभी कुछ समय बाद आप देखेंगे न्यूयॉर्क में आतंकवाद पैर पसार लेगा और वहां नफ़रत की आंधी आएगी।

क्योंकि अमेरिका और यूरोप ने जो कम्युनिस्ट विचारधारा का सांप पाला है वह भारत और एशिया को बर्बाद करने के लिए पाला था अब यह सांप अमेरिका और यूरोप को डंसने उनके घर में पहुंच गया है आज लंदन सुरक्षित नहीं है लंदन से पिछले एक साल में बारह हजार मिलिनेयर लोग चले गए हैं इस बढ़ते आतंकवाद, मुस्लिमकरण के चलते। 

जब तक हम किसी बात को मन बना कर समझते नहीं हैं जब तक हम सच को समझते नहीं, झूठ और सच का अंतर नहीं समझते या जानते हुए भी बोलते नहीं तो हम अपराध कम नहीं कर सकते उसको बढ़ने का अवसर दे रहे होते हैं और यह काम भारत में ख़ुद सेक्युलर हिन्दू समाज ने किया है।और यही काम यूरोप और अमेरिका के कम्युनिस्ट विचारधारा के लोगों ने किया है जिसके घातक परिणाम अब उनको भुगतान करने होंगे।


रविवार, 26 अक्टूबर 2025

नयी ग़ज़ल। सूबे सिंह सुजान

 घबराइए नहीं कभी भी कामकाज से 

हर काम कीजिए सदा अपने मिज़ाज से।

सच के लिए विवाद नहीं, चर्चा ही करो, 

पीछे हटें न हम किसी भी ऐतराज से।

जो बात हम करें,तो सकारात्मक करें,

नीयत को ठीक करके ही प्रण कर लें आज से।

हमको बदलना होगा, नये वक्त के लिए,

बेशक मिली थी, कमियां हमें इस समाज से।

व्यापार का भी धर्म और संस्कार खूब है,

हम मूलधन को छोड़ बहुत खुश हैं ब्याज से।


सूबे सिंह सुजान 





नयी ग़ज़ल। अभी हुई।बहुत दिनों बाद ग़ज़ल हुई है।

जब नये विचारों, मानकों, प्रतीकों की तलाश, प्यास होती है तो बड़ी मुश्किल से कुछ दिखाई पड़ता है बहुत मेहनत की भागदौड़ बहुत शांत भी करती है।

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

अपनी गरिमा को व्यक्ति ख़ुद नीचे गिरा लेते हैं।


 हर व्यक्ति का अपना एक अलग अलग स्वभाव, व्यक्तित्व होता है वह उसी प्रकार,कि जिस प्रकार उसकी शक्ल अलग-अलग, बुद्धि अलग अलग होती है।

लेकिन यह तो सामान्य बात है परन्तु हैरानी तब ज़्यादा होती है जब व्यक्ति के गिरने या उठने का स्तर भी अलग-अलग देखने को मिलता है यह उठ कर या बैठना नहीं है यह चारित्रिक, वैचारिक स्तर का उठना व बैठना है इससे भी गंभीर बात तब होती है जब वह कोई उच्च स्तरीय अधिकारी के पद पर कार्यरत होकर एक सामान्य नागरिक से भी नीचले स्तर पर जानते हुए भी गिर पड़ता है।

सामाज के लिए गंभीर प्रश्न तब बन जाता है जब उच्च स्तरीय अधिकारी और उच्च चरित्र प्रदर्शित करने वाले व्यक्ति यह अशोभनीय कार्य करते हैं और  वह अपने स्तर पर अपने करीबी लोगों के लिए अनेकानेक नाजायज़ कार्य करते हैं और जो व्यक्ति उनको सही राह बताए और वह उसको न अपनाकर उसी के विरुद्ध तुच्छ मानसिकता के साथ बातचीत करते हैं यह समाज में अति संवेदनहीनता को प्रदर्शित करता है और बहुत दुःखद यह होता है कि सम्मुख बैठे समाज के गणमान्य कहलाने वाले खामोश रहते हैं जबकि कुछ दिनों बाद उनका भी यह नंबर आएगा यह वह भी नहीं सोचते जबकि जानते हैं कि ऐसा होता आया है लेकिन स्वार्थ वश वह सोचते हैं शायद मेरा नहीं दूसरे का नंबर आएगा।


शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

भावनाओं से व्यापार करना कानूनी जुर्म घोषित होना चाहिए

 जीवन शैली में सभ्यता , संस्कृति व धर्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसके पश्चात संविधान व कानून का योगदान आया है लेकिन यदि संविधान का प्रयोग अलग अलग व्यक्तियों के लिए उनकी अलग-अलग मान्यता के लिए जानबूझकर साज़िश के तहत किया जाने लगता है तो संविधान का उल्लंघन भी जानबूझकर किया जाता है तो संविधान का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।

और जब किसी एक पक्ष की जानबूझकर की गई गल्तियो में दूसरे पक्ष को भी शामिल करके अपनी बात कहना व प्रचारित करना भी एक तरह का जुर्म है और यह जुर्म अर्थात यह बात इस तरह कहना साजिशतन सिखाया जाए तो यह संविधान व कानून में अपराध श्रेणी में शामिल करके सजा दिया जाना चाहिए न कि उनकी भावनाओं की बात व विचारों की स्वतंत्रता कह कर टाल दिया जाए क्योंकि आप दूसरे पक्ष को जानबूझकर बात में हिस्सा बना कर जुर्म करने वाले के पक्ष को कमजोर करके उसे बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

जब कश्मीर में भारत के राज् चिन्ह अशोक चक्र जो हटाया, तोड़ा, जलाया जाता है जो कि बरसों से पहले वहां पर अंकित है तो उसके अपराध में उन अपराधियों को सीधा अपराधी न कह कर ,उनकी बात के बीच में दूसरे पक्ष को ले आते हैं, जिसका कोई तर्क नहीं है तो आप जुर्म करने वाले पक्ष को जानबूझकर बचाने की साज़िश कर रहे हैं।

ऐसा भारत की अदालतों में अक्सर हमारे वकील,जज लोग करते हैं और इसी तरह मीडिया भी सरेआम अपने विचारों की स्वतंत्रता का सहारा लेकर दूसरे पक्ष पर अपने विचार जबरदस्ती थोपते हुए उसे घसीट लेते हैं यह वास्तव में एक साज़िश का पहलू होता है।




सूबे सिंह सुजान 

सोमवार, 25 अगस्त 2025

वर्षा ऋतु अपने उतरार्द्ध में अधिक यौवना हो गई है।

 ऐसा भी लगता है कि वर्षा ऋतु अपने उतरार्द्ध में अधिक यौवना हो गई है जहां जहां अभी तक पेड़ पौधे,बेलें,घास आदि प्यास से मर रहे थे और उदासीनता को अपना गहना समझ रहे थे उदासी में कभी-कभी गंभीरता दिखाई पड़ती थी और गंभीरता देखने में विचारवान लगती थी और इस बौद्धिकता का पुट वर्षाकाल में भी वर्षा ऋतु का बिछोह था।

वर्षा अपने अंतिम पड़ाव में जब उम्र के निकलने, आनंद के अधूरेपन को लेकर चिंतित हो उठी तो सहसा टूट कर बरसने लगी है और पेड़ पौधे ये गिलोय की बेल तो अच्छे से समझती है जब गिलोए की बेल को पेड़ नहीं मिले तो वह बिजली के खंभे के साथ लिपट जाती है आधुनिकता वनस्पति को विवशता में अपनानी पड़ती है लेकिन मनुष्य आहत हो उठता है वह वर्षा ऋतु की इच्छाओं को सहन नहीं कर पाते हैं वह वर्षा में टूटने वाले पहाड़ों को प्रकृति की विनाशलीला का नाम देते हैं और वर्षा ऋतु के गुजरने के पश्चात उन्हीं पहाड़ों में बम लगा कर उन्हें तोड़ते हैं।

वर्षा ऋतु को अपनी प्यास भी बुझानी है और प्रकृति के हर कण तक भी पहुंचना है यदि कहीं पर वह न पहुंच सके, फ़सल अच्छी नहीं हुई तो मनुष्य उसे भला बुरा कहते हैं यदि वह अपने मन भर बरस जाए तो उसे भला बुरा कहते हैं नदियों के रास्तों में घर बना कर उसका रास्ता रोक लेते हैं और जब वर्षा ऋतु उसे बहाकर लाए तो भगवान को गालियां देते हुए रोते हैं मनुष्यों से अच्छे पेड़ पौधे व वनस्पति हैं वह उगने, टूटने पर भी वर्षा से प्रेम करते हैं कोई शिकायत नहीं करते हैं अपना अहोभाग्य समझकर उसमें तत्लीनता से समाहित हो जाते हैं।


सूबे सिंह सुजान 

#वर्षा #ऋतु 



गुरुवार, 7 अगस्त 2025

कवियों का चुटकुले सुनाना कवि होने पर सवाल खड़े करता है सूबे सिंह सुजान

 कवि सम्मेलन में जो लोग चुटकुले सुनाते हैं वह स्वयं ताली बजाने के लिए भी कहते हैं और जो लोग उनकी बात मान लेते हैं अर्थात अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया और सुनकर हँसते हैं एक तो जो व्यक्ति चुटकुले सुना रहा है वह स्वयं को कवि बता रहा है जबकि वह कवि नहीं है और हम सब जो वह कह रहा है वह मान लेते हैं इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है कि वह व्यक्ति चुटकुले ऐसे सुनाता है कि उनमें कहीं भी कोई बात,तथ्य, विचार,तर्क,संभावना नहीं है सिर्फ वह फुहड़ता,गाली, लड़कियों व लड़कों के जननांगों पर गाली द्विअर्थी संवाद में देते हैं और लड़कियां वहां बैठी हुई बहुत हंसती हैं वह ख़ासतौर पर औरतों पर नंगेपन के चुटकुले सुनाते हैं और हम बिना समझे हंस रहे हैं।

हास्य-व्यंग्य बहुत सकारात्मक और सटीक विधा है आप हास्य व्यंग को कबीरदास,दुष्यंत कुमार,धूमिल और न जाने कितने असंख्य शायरों की शायरी में देख सकते हैं लेकिन उनमें कहीं भी फुहड़ता,नंगापन नहीं है लेकिन अत्यधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि हम वही लोग वहां बैठकर कैसे हंस लेते हैं जो हमारे ऊपर, हमारी संस्कृति, संस्कार, विश्वसनीयता पर हमला होता है हमें उसको सहन ही नहीं करना था लेकिन हम हंस रहे हैं?


कवि वह होता है जो काव्य के माध्यम से आपकी बुद्धि का योग करवाता है जो आपकी बुद्धिमत्ता को प्रखर करता है आपकी बुद्धि को खेल खिलाता है ताकि वह स्वस्थ रहे

और इसके लिए नये विचार या पुनः विचारों को अभ्यास में लाना या बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना होता है सामाजिक,देशकाल, व्यवहार, प्रेम, मनोरंजन, श्रृंगार,सदाचार, भक्ति,जीवनशैली,जीवन तत्वों के बारे सटीक बौद्धिकता को जागरूक करता है। 

यदि हम कुछ समय के लिए उच्च विचार विमर्श को सुनना शुरू करेंगे तो हमें उसमें आनंद भी आएगा और ज्ञान अर्जित भी होगा। उच्चता, श्रेष्ठता को समझने में आनंद है जो उच्च बुद्धिजीवी होते हैं वह गहरी अर्थपूर्ण कविता, ग़ज़ल, कहानी को सुनना व कहना पसंद करते हैं जो लोग केवल गंदे चुटकले पर हंसते हैं या सुनाते हैं वह दोनों प्रवृति के लोग निम्न चरित्र को अपनाना और प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।


सूबे सिंह सुजान 


हिंदी पर मुसलसल ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान

 हिंदी पर मुसलसल ग़ज़ल -


अपना स्वदेश भाव हिंदी में 

एकता का बहाव हिंदी में।

देश में रोज़गार या व्यापार,

और ही और बढ़ाव हिंदी में।

दादा, माता पिता बहन भाई, 

प्रेम, संबंध चाव हिंदी में।

सारी भाषाओं की यही सिरमौर,

जोड़ने का लगाव हिंदी में।

मन वचन कर्म भारतीय रही 

ऐतिहासिक रखाव हिंदी में।

भावनाओं का एक संगम है,

शत्रुता का अभाव हिंदी में।

कुल की रक्षा सदैव करती है,

चौधरी का दबाव हिंदी में।

देश भारत को जोड़ने का है,

सबसे ज़्यादा प्रभाव हिंदी में।


सूबे सिंह सुजान



शनिवार, 5 जुलाई 2025

वायु की दिशाएं रोग व निदान तय करती हैं।

 वायु की दिशाएं रोग व उनके निदान तय करती हैं।


एक भारतीय किसान हवा के दिशाओं की ओर से बहने के लाभ व हानि को सदियों से जानते हैं और उनका अपनी फसलों के लिए प्रयोग करते आए हैं ।

जैसे पश्चिमी दिशा से बहने वाली वायु मनुष्य ही नहीं सभी फ़ैसलों, वनस्पति और पृथ्वी पर सभी प्राणियों को स्वास्थ्य प्रदान करती है और वहीं पूर्व दिशा की वायु इसके विपरित रोग को,रोग पैदा करने वाले कीट को पैदा करती है।

यह सब किसान बेहतर जानते हैं और यह उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा गया है यह प्रकृति की प्रक्रिया के साथ आत्मसात होकर सीखा जाता है यह अत्यधिक समर्पण द्वारा सिद्ध होता है। यह विज्ञान ही तो है जिसे किसान अपने जीवन में प्रयोग करते रहे हैं।

यह उनकी शिक्षा ही है तो क्या हम केवल अंग्रेजी मानसिकता से दी गई शिक्षा को सब कुछ क्यों मानते हैं वह तो पृथ्वी, प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का ज्यादा काम करते हैं हम सनातन को समझें यह सनातन संस्कृति के कार्य प्रकृति प्रदत्त हैं जो सदैव रहेंगे।

सूबे सिंह सुजान 

#हवा #वायु #रोग #निदान 


चित्र में सूबे सिंह सुजान अपने स्कूल के बच्चों के साथ पौधा लगाते हुए।