दुःखी विषय पर, जो लोग खुश हैं,
उन्हीं की पहचान,आप रखना।
जिसे जो करना था कर गया वो,
तो लाज भगवान,आप रखना।
सूबे सिंह सुजान
दुःखी विषय पर, जो लोग खुश हैं,
उन्हीं की पहचान,आप रखना।
जिसे जो करना था कर गया वो,
तो लाज भगवान,आप रखना।
सूबे सिंह सुजान
हमें अपने अभिमान को समझने में देर लगती है हम दूसरों में दोष न होते भी दिखाने का प्रयास करते हैं लेकिन अपने दोष होते हुए भी स्वार्थवश नकारते रहते हैं।
मनुष्य अपने मनोभावों का सहचर होता है लेकिन अंह त्याग करने वाले लोग ही दूसरे के मनोभावों को समझ सकते हैं और ऐसा भी नहीं होता है कि जो मनुष्य एक बार किसी के बारे में बिल्कुल सपाट, ईमानदार निष्ठावान होता है वह हर समय रहे ऐसा असंभव है और ऐसा रहना भी चाहिए वरना मनुष्य सृष्टि के लिए घातक बन सकता है।
प्रकृति ने हर क्षेत्र, वस्तु, तत्वों व जीवों को सबसे सटीक रचनाएं प्रकाशित की हुई हैं इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता सब कुछ भगवान की देन हैं और भगवान ही सृष्टि को चला रहे हैं जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वह स्वयं में अहंकारी हैं वह समझ नहीं पाते उनकी सोचने की शक्ति केवल स्वार्थ भरी होती है वह स्वयं अपने स्वार्थ के लिए नास्तिकता की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं जिस भौतिक तत्वों को वह सब कुछ मानते हैं उनकी समझ भी उन्हें नहीं होती वह उन तत्वों को भी स्वीकार नहीं कर पाते जिनका उपभोग करते रहते हैं।
सूबे सिंह
महात्मा बुद्ध का दर्शन मानवता को शांति प्रदान करने के लिए ही है लेकिन उस दर्शन को केवल सनातन संस्कृति, हिन्दू समाज ने अपनाया था जिस कारण यह समाज बिल्कुल शांतिप्रिय हो गया और हथियार युद्ध त्याग कर वर्षों ऐसा रहने से हथियार, लड़ना सब भूल गया और रेगिस्तान देशों से मुगल आए और इन सनातन संस्कृति के शांतिप्रिय लोगों को लगातार मारते रहे इनके देश पर कब्जा कर लिया इनकी संस्कृति को बदल दिया लेकिन महात्मा बौद्ध का दर्शन इनके दिमाग पर अब तक छाया है इनका मोह भंग नहीं हुआ यह परिणाम विश्व ने शांति को अपनाने का दिया और यह मानवता को मरने के लिए तैयार महात्मा बौद्ध ने किया था।
उस समय अनुसार बुद्ध ने तो सर्वोत्तम ज्ञान दिया है लेकिन वही ज्ञान भारतीय संस्कृति के लिए अभिशाप बन गया है जिस तरह पेट में कई बार अच्छा भोजन भी असमय करने पर विषैला हो जाता है और शरीर को अस्वस्थ कर देता है उसी प्रकार बुद्ध का उच्च दर्शन भी उनके भविष्य में भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने का कारण बन गया है।
प्रकृति अपने संचालन बनाए रखने के लिए हर चीज़ का संतुलन चाहती तभी जीवन है और यह संघर्षशीलता में ही जीवन है शिथिलता या तीव्रता, दोनों परिस्थितियों में यह नष्ट होता है और महात्मा बुद्ध भी जीवन को असंतुलित करते हैं।
सत्य ज्ञान केवल श्रीमद्भागवत गीता में ही है कृष्ण भगवान जीवन में संघर्षरत हैं और संघर्षों की शिक्षा देते हैं यही सत्य सनातन संस्कृति का ज्ञान है यही प्रकृति का यथार्थ ज्ञान है।