गुरुवार, 12 सितंबर 2024

चुनावों से पहले डराने लगे हैं।

 हमें अपनी ताक़त दिखाने लगे हैं 

चुनावों से पहले डराने लगे हैं।


बुरों को सही, जो बताने लगे हैं 

ये माहौल कैसा बनाने लगे हैं?


चुनावों के पीछे वो क्या क्या करेंगे,

अभी से जो लड़ने लड़ाने लगे हैं।


वो जनता को कल कैसा आराम देंगे 

सड़क बंद करके दिखाने लगे हैं।


अरे आम लोगों ज़रा ध्यान रखना,

इधर कौन बदमाश आने लगे हैं।


कलम के सिपाही भी अब भेष बदले,

हमें इस समय आज़माने लगे हैं।


सूबे सिंह सुजान

कवि गोष्ठी 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

मेरी आलोचना जरूरी है।

मेरी आलोचना जरूरी है 

कुछ नया सीखना जरूरी है।


शब्द दर शब्द सीखना होगा,

शब्द की साधना जरूरी है।


अब रचो मानवीय तकनीकें,

क्योंकि संवेदना जरूरी है।


मूंग,अरहर,उड़द तो हैं लेकिन,

दाल में कुछ चना जरूरी है।


नल खुला छोड़ दे अगर टीचर,

बच्चों को देखना जरूरी है।


मेरे अंदर कमी हजारों हैं,

इस तरह सोचना ज़रूरी है।


मैं ग़ज़ल में गिलोय रस भर दूं,

अब नयी योजना जरूरी है।


सूबे सिंह सुजान