रक्तदान। महादान।
तीस बार कर चुके सूबे सिंह सुजान।
तेरी खुशी के लिए जन्मदिन मनाना है
तेरी खुशी ही मेरे जीने का बहाना है।
पता नहीं मुझे तारीख़, क्या महीना था,
खुशी की बात है दुनिया में आना जाना है।
तो मास्टर ने ही इक्कीस फ़रवरी लिख दी,
अब उम्र भर इसी दिन को ही आज़माना है।
जो लोग मिलके,बिछड़ने के बाद याद आये,
जरूर उनसे ही रिश्ता कोई पुराना है।
पसंद कर मुझे या नापसंद भी करना ,
मगर यहां किसी का कुछ नहीं ठिकाना है।
ये उम्र भर के लिए बात याद रखना "सुजान"
चला जहां से, वहीं के लिए रवाना है।
सूबे सिंह सुजान
सब जीवों की दिन रात की दौड़ सिर्फ़ अपनी ओर आकर्षित करने की है और इसका वास्तविक रूप परमात्मा है।अर्थात हम सब जीवों की दौड़ परमात्मा की ओर है हमारे रोज़मर्रा के काम, हमारी संस्कृति है वह संस्कृति परमात्मा है हमारे काम क्या हैं? क्यों हैं? हम ही अक्सर इनसे भी अज्ञात रहते हैं हम अपनी संस्कृति को पहचान नहीं पाते अर्थात अपने आप को सटीक जानते नहीं हैं और लगातार बेतरतीब तरीके से दौड़ते रहते हैं।
हम सब जीवन के रेगिस्तान में हैं और पानी के तालाब की ओर प्यासे होकर दौड़ रहे हैं। परमात्मा वह सागर है जिसमें जाकर सब नदियां मिलती हैं हर नदी सागर की ओर बहती है बहना उसकी संस्कृति है यह उसका कर्तव्य है यही उसका जीवन है और यह जीवन सागर को समर्पित है वह सागर परमात्मा है जीना भी सब जीवों की संस्कृति है, कर्तव्य है और सब जीव अपनी संस्कृति को समर्पित हैं अपने परमात्मा को समर्पित हैं। हम सबको उसी अथाह सागर में मिलना है हमारी उससे मिलने की दौड़ ही हमारा जीवन है।
कवि अभ्यास से नहीं हो सकते हैं कवि प्राकृतिक रूप से होता है।
प्रोफेसर होना अलग बात है और कवि होना अलग बात है।
मैंने बहुत से प्रोफेसर को कविता कहते सुना,पढ़ा है उनकी कविता में आत्मीयता, संवेदना मरी हुई होती है ऐसा लगता है शब्दों की बनावट कर रखी है। शब्दों को इधर से उठा कर उधर रख दिया है बहुत कम प्रोफेसर ऐसे होते हैं जिनमें कवित्व होता है लेकिन वर्तमान में जो प्रोफेसर हो गया वह अपने आपको सबसे बड़ा कवि स्वयं घोषित करने का अधिकार समझता है और उनके इस पाखंड में असली कवि दब जाते हैं उनके अधिकार इनकी डिग्रियों की आड़ में दब जाते हैं।
अधिकतर प्रोफेसर लोग लिखना केवल अपना अधिकार समझते हैं यह एक तरह की वैचारिक और बौद्धिक गुंडागर्दी होती है और कभी भी प्राकृतिक लेखन उनसे नहीं हो पाता।
असल में तो प्रोफेसर लोग कबीरदास, तुलसीदास,सूरदास,रसखान,खुसरो,जायसी, रामधारी सिंह दिनकर, निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, ग़ालिब व दुष्यंत कुमार को पढ़ा सकते हैं और सभी संत और जन कवि कभी अपनी डिग्री या दंभ नहीं भरते थे इसलिए वही वास्तविक रूप में जन कवि होते हैं लेकिन प्रोफेसर लोगों के लिए उनको पढ़ाना ही सही काम है लेकिन वह इनको पढ़ाते पढ़ाते स्वंय को प्रचारित करने के लिए लालायित होने लगते हैं और आत्ममुग्धता के शिकार हो जाते
कुछ कवि ऐसे होते हैं जो कवि सम्मेलन आयोजित करवाते रहते हैं उनके स्वयं को और अन्य कवियों की प्रतिभा को निखारना आता है वह सबको अवसर देते हैं वह कार्यक्रम के लिए अनेकों प्रयास करते रहते हैं और जब तक कार्यक्रम होता है तब तक वह चिंतित रहते हैं हर प्रकार की देखरेख करने में व्यस्त रहते हैं और स्वयं की रचना को संतुलित रूप से व्यक्त करने में सक्षम इसलिए नहीं हो पाते क्योंकि वह कार्यक्रम की तैयारियां व सुचारू करने को ज्यादा महत्व देते हैं और कार्यक्रम होने के पश्चात उन लोगों से अपनी कमियां सुनने का अवसर मिलता है जिनको उन्होंने कविता कहने का उपयुक्त अवसर प्रदान किया था।यह अपनी खिल्ली स्वयं उड़ाने का काम अति साहसिक लोग ही कर पाते हैं।वह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते रहते हैं उनको नकारात्मक लोगों के बीच रहना ही चाहिए ताकि नकारात्मक प्रभाव कम किया जा सके। नकारात्मक लोग अपने नकारा गुण को प्रकट करते रहते हैं वह कभी कुछ ऐसा काम कर नहीं पाते जो किसी अन्य के काम आ सके वह केवल सकारात्मकता में कमियां ढूंढने में व्यस्त रहते हैं और सकारात्मक लोग अपनी सकारात्मकता को लेकर बिना थके चलते रहते हैं और यही क्रम जीवन में सदैव चलता रहता है जो कि प्राकृतिक गुण है।