बेबाक साहब अच्छे शायर थे उनके साथ एक सुनाम नाम के युवा शायर उनको उनके बुढ़ापे में मुशायरे में ले जाने व आने में मदद करते थे जबकि उनके दो बेटे, दोनों अच्छी नौकरी, परिवार में व्यस्त थे। और वह खुद रिटायर्ड प्रधानाचार्य थे।
सुनाम उनके एक फ़ोन पर उनके साथ खड़ा रहता था, उनके गुजरने के पश्चात् सुनाम ने उनकी शायरी, जीवन व उनके कार्यों पर एक आलेख फेसबुक पर लिखा,जिसको उनके बेटे अंजुम ने पढ़ा और सुनाम के आलेख पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि मेरे पिता जी का नाम सम्मान के साथ नहीं लिखा?
सुनाम ने "बेबाक साहब" लिख दिया था। जो उन्हें नागवार गुजरा,इस बात पर अंजुम जी ने बहुत झगड़ा किया और सुनाम साहब को बहुत बार मुआफी मांगनी पड़ी।
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