सोमवार, 31 मई 2021

कविताओं के ऊपर शक्लें, सूरतें बैठी हैं।

 कविताओं के ऊपर सूरतें बैठी हैं।


शक्लों,सूरतों ने,

कविताओं की जगह पर कब्ज़ा किया गया है।

कविताओं को घुटनों के नीचे दबाकर, घोटने की कोशिश की जा रही है।

कविताओं के ऊपर शक्लें,सूरतें बैठी हैं, ये शक्लें भावनाओं को मांसल बनाने में लगी हैं।


ये सूरतें आतंकियों की तरह, घुसपैठ कर रही हैं और इनको पहले पहल पहचानना मुश्किल होता है,हम बहुत बार इनके धोखे का शिकार होते हैं।


कविताओं के चेहरों को अजीबोगरीब मास्क पहरा दिए हैं,मास्क में कीटाणु छोड़ दिए हैं, उनको जबरदस्ती बीमार बताया जा रहा है, उनको नक़ली दवा, इंजेक्शन, मनमर्ज़ी की कीमतों पर बेचे गए, उनसे उनकी ऑक्सीजन छीन कर, ऑक्सीजन के सिलेंडर दे दिए गए हैं, उनकी रिपोर्ट करोना पॉजिटिव बता कर, उनको लूट कर, फिर उनको मार कर,उनके हृदय,आँखें और अन्य चीजों को निकाल कर बेचा जा रहा है।इस महामारी में कविताओं के जीवन पर संकट है। यह पहचानना मुश्किल हो रहा है कि कौन कविता को बचा रहा है और कौन मार रहा है? जबकि सब कविताओं को बचाने के हितैषी बता रहे हैं लेकिन कविताएं फिर भी मर रही हैं कविताओं के जीवन रक्षक के लिए कुछ कवियों ने वैक्सीन बनायी तो कुछ कवियों ने उन्हें नक़ली और दूसरे दलों की बता कर न लगवाने की अफवाहों को फैलाया और कविताएं निर्णय नहीं ले सकी और मरती रही। 


कविताओं को लाखों लोग प्यार करते हैं और लाखों लोग उनसे घृणा करते हैं कविताएं सबसे प्यार करती हैं और बहुत बार धोखे का शिकार होती हैं कविताएं प्यार व घृणा दोनों को स्वीकार कर लेती हैं वे हर कण कण में समाहित हो जाती हैं और हर कण कण उनको अपनी आत्मा कहता है। लेकिन हर कण जरूरी नहीं कि उनको अपने अंदर होते हुए भी पहचान ले।

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