ईर्ष्या से इतनी पीड़ा क्यों होती है?
ईर्ष्या तुलना है। और हमें तुलना करना सिखाया गया है, हमनें तुलना करना सीख लिया है, हमेशा तुलना करते हैं। किसी और के पास ज्यादा अच्छा मकान है, किसी और के पास ज्यादा सुंदर शरीर है, किसी और के पास अधिक पैसा है, किसी और के पास करिश्माई व्यक्तित्व है। जो भी तुम्हारे आस-पास से गुजरता है उससे अपनी तुलना करते रहो, जिसका परिणाम होगा, बहुत अधिक ईर्ष्या की उत्पत्ति; यह ईर्ष्या तुलनात्मक जीवन जीने का बाइ प्रोडक्ट है।
अन्यथा यदि आप तुलना करना छोड़ देते हो तो ईर्ष्या गायब हो जाती है। तब बस आप जानते हो कि आप आप हो, आप कुछ और नहीं हो, और कोई जरूरत भी नहीं है। अच्छा है आप अपनी तुलना पेड़ों के साथ नहीं करते हो, अन्यथा आप ईर्ष्या करना शुरू कर दोगे कि हम हरे क्यों नहीं हो? और अस्तित्व हमारे लिए इतना कठोर क्यों है? हमारे फूल क्यों नहीं हैं? यह अच्छा है कि आप अपनी तुलना पक्षियों, नदियों, पहाड़ों से नहीं करते हो, अन्यथा आपको दुख भोगना होगा। तुम सिर्फ इंसानों के साथ तुलना करते हो, क्योंकि आपने इंसानों के साथ तुलना करना सीखा है; आप मोरों और तोतों के साथ तुलना नहीं करते हो। अन्यथा आपकी ईर्ष्या और भी ज्यादा होगी: आप ईर्ष्या से इतना दबे होओगे कि थोड़ा भी नहीं जी पाओगे।
तुलना बहुत ही मूर्खतापूर्ण वृत्ति है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अनुपम और अतुलनीय है। एक बार यह समझ हर एक में आ जाए, ईर्ष्या गायब हो जाएगी। प्रत्येक अनुपम और अतुलनीय है। आप सिर्फ आप हो: कोई भी कभी भी आपके जैसा नहीं हुआ, और कोई भी कभी भी आपके जैसा नहीं होगा। और न ही आपको भी किसी और के जैसा होने की जरुरत है।अस्तित्व केवल मौलिक सृजन करता है; यह नकलों में, कार्बन कापी में भरोसा नहीं करता।
अगले दरवाजे पर महान घटनाएं घट रही हैं: घास ज्यादा हरी है, गुलाब ज्यादा खिले हैं। अपने अलावा सब लोग इतना खुश दिखाई देते हैं। आप हमेशा तुलना कर रहे हो। और यही दूसरों के साथ भी हो रहा है, वे भी तुलना कर रहे हैं। हो सकता है वे भी सोच रहे हों कि आपके मैदान की घास ज्यादा हरी है, दूर से यह हमेशा हरी दिखाई देती है ।'
सुप्रभात दोस्तों।😊😊😊div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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