मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

ASHARA UL HAQ MAJAJ LAKHNVI  ....

हिजाबे फतना परवर अब उठा लेती तो अच्छा था।
 खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था

 तेरी नीची नजर खुद तेरी अस्मत की मुहाफज है।
 तू इस नश्तर की तेजी आजमा लेती तो अच्छा था

 यह तेरा जर्द रुख, यह खुश्क लब, यह वहम, यह वहशत।
 तू अपने सर से यह बादल हटा लेती तो अच्छा था

 दिले मजरुह को मजरुहतर करने से क्या हासिल? 
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था

 तेर माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा है। 
अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था

 तेरे माथे पे यह आँचल बहुत ही खूब है लेकिन।
 तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।


- मजाज़ लखनवी   >

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