घबराइए नहीं कभी भी कामकाज से
हर काम कीजिए सदा अपने मिज़ाज से।
सच के लिए विवाद नहीं, चर्चा ही करो,
पीछे हटें न हम किसी भी ऐतराज से।
जो बात हम करें,तो सकारात्मक करें,
नीयत को ठीक करके ही प्रण कर लें आज से।
हमको बदलना होगा, नये वक्त के लिए,
बेशक मिली थी, कमियां हमें इस समाज से।
व्यापार का भी धर्म और संस्कार खूब है,
हम मूलधन को छोड़ बहुत खुश हैं ब्याज से।
सूबे सिंह सुजान
नयी ग़ज़ल। अभी हुई।बहुत दिनों बाद ग़ज़ल हुई है।
जब नये विचारों, मानकों, प्रतीकों की तलाश, प्यास होती है तो बड़ी मुश्किल से कुछ दिखाई पड़ता है बहुत मेहनत की भागदौड़ बहुत शांत भी करती है।

