जब एक चित्रकार अपनी कूची से किसी नये चित्र, नयी शक्ल या भाव भंगिमा को जन्म देता है तो यह एक तरह का माँ की तरह नयी कृति का जन्म होता है इसी को सर्जनात्मकता, बुद्धिमत्ता कहा जाता है।
और यदि एक अच्छा गणित या भाषा शिक्षक अच्छा पढ़ाता है तो वह अच्छा ग्रहणकर्ता है परन्तु बुद्धिजीवी नहीं है क्योंकि उसने प्रखरता के साथ ग्रहण किया है सृजन नहीं किया है।
लेकिन आज के दौर में इस ग्रहणकर्ता को बुद्धिजीवी मान कर इसकी ज्यादा सुनी व मानी जाती है और यह इस सहारे अच्छा व्यापार करता है।
सूबे सिंह सुजान