शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

गजल-5सीने में आग-गजल संग्रह से

सुजान कवि
गजल-5-(सीने में आग) गजल संग्रह से

कितनी गर्मी बढ गई बरसात होनी चाहिये
थक गया सूरज बहुत अब रात होनी चाहिये
...बीते दिन जब याद आये दिल ने मुझसे फिर कहा
आज अपनी प्रेमिका से बात होनी चाहिये
हम न हिन्दू,हम न मुस्लिम,ये हमारी भूल है
आदमी की आदमी ही जात होनी चाहिये

शांति की वार्ता का कुछ परिणाम निकला ही नहीं
चाल अब ऐसी चलें शहमात होनी चाहिये
आजकल यही सोच कर गीत गाता है सुजान

दुश्मनों से दोस्ती की बात होनी चाहिये

सूबे सिहं सुजान

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