शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

दुख में पुरुष ख़ामोश और स्त्री ज़ोर से रो पड़ती है।

 दुख: में पुरुष ख़ामोश हो जाता है और स्त्री ज़ोर से रो पड़ती है।


दुख को कम करने के लिए रोना जरुरी है इसलिए स्त्री रोती है और यह समझदारी है।


पुरुष की प्रकृति कठोर होती है उसे सहने के लिए बनाया गया है इसलिए वह ख़ुद पर सहता है वह दुख को अपने पर झेलता है यही उसकी प्रकृति है हृदय तो पुरुष का भी बहुत कोमल होता है लेकिन वह समझता देर से है। बहुत बार पुरुष भी बहुत रोना चाहता है लेकिन अपनी प्राकृतिक, सामाजिक व्यवस्था के कारण रो नहीं सकता।


प्रकृति ने स्त्री को बहुत अधिक नर्म,कोमल,हृदय से और भी कोमल बनाया है वह पल में प्रलय है

वह जन्मदात्री है और बीज कोमल मिट्टी,नमी, समुचित आकाश, वायु, प्रकाश के संतुलन में पौधा बनता है।


सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 17 अगस्त 2022

स्वयं को हर जगह देख सकते हैं

 किसी भी रूप में स्वयं को देखा जा सकता है।

यदि आप अपने बीते दिनोंं को देखना चाहते हैं तो बहुत आराम से दिखाई देगा, यदि आप देखेंगे तो।

आपको जो कुछ भी दिखाई दे रहा है कहीं भी नज़र घुमाओ, जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वह तुम्हारी तरह ही है या था या होगा।


पृथ्वी पर उपस्थित हर कण बिल्कुल सटीक आप की तरह है

आप किसी मनुष्य,जानवर या वनस्पति किसी में भी देख सकते हैं वह सब आपकी तरह हू ब हू है। लेकिन देखने के लिए आपको स्वयं को एक ध्यान में रखना होगा एक प्रकृतिवादी बनकर, क्योंकि जैसी प्रकृति है वैसा बनना होगा वास्तव में आप ऐसे ही हैं लेकिन मनुष्य की निर्मित भौतिक वस्तुओं पर हमें गर्व की अनुभूति होती है जिसे हम छोड़ नहीं पाते, जबकि हम यह भूल जाते हैं हम भी उसी प्रक्रिया में है जिसमें सब उपस्थित वस्तुएं हैं।

शनिवार, 13 अगस्त 2022

क्या हम जरूरतमंद की मदद करते हैं?

 अपने कपड़े, रोज नए पहनने जरूरी हैं बनिस्बत किसी के साथ इन्सानियत निभाना।

हम लोग प्रतिदिन अपनी ऐश्वर्या के अनेक कार्य, अनेक बिना जरूरत के काम करते हैं जैसे-: हर रोज़ नए नए कपड़े बदलना, सौंदर्य प्रसाधन, गाड़ी होते हुए भी अन्य गाड़ियां लेना, बेवजह सड़क पर गाड़ियों को चलाना, बच्चों को फिजूलखर्ची के लिए पैसे देना आदि हम बहुत खर्च करते हैं जिनके किए बगैर भी ज़िन्दगी जी जा सकती है।

लेकिन हम किसी जरूरतमंद को ज़रुरत के समय यदि वह कोई मदद मांगे तो मदद करने से जवाब दे देते हैं।

हम ऐसा करते समय ज़रा सा भी नहीं सोचते?

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

भावना

 बिना भावना कोई रिश्ता नहीं है

मगर भावना का दिखावा नहीं है।

जमे बर्फ अच्छी,तो पिघले भी अच्छी,

नदी क्या बनेगी,जो झरना नहीं है।


सूबे सिंह सुजान

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

शिक्षक का सम्मान ही विभाग व अधिकारियों का सम्मान है

 शिक्षक के सम्मान में ही विभाग व अधिकारी का सम्मान है। सारा शिक्षा विभाग आखिर बच्चों और शिक्षक पर आधारित है शिक्षक को स्कूल में ही रहने दिया जाए और उसका सम्मान करना ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों का सम्मान है 

यदि शिक्षक अधिकारियों का होटलों में अपने खर्चे पर बड़े स्तर पर पार्टी देकर सम्मान करते हैं तो यह ठीक नहीं है बल्कि यह समाज को, शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने जैसा है। 


शिक्षक को सम्मानित करने में ही अधिकारियों का बड़प्पन है एक सुसंस्कृत, सुशिक्षित संस्कारवान अधिकारी कभी शिक्षकों से निवेदन करके सम्मानित होना पसंद नहीं करेंगे और इसी तरह कोई भी सुसंस्कृत सुशिक्षित संस्कारवान शिक्षक भी अपने स्कूल में बच्चों को छोड़कर अधिकारियों की चापलूसी नहीं कर सकता यदि करते हैं तो वह अपने कर्तव्य से विमुख हो चुका है।