सोमवार, 25 अगस्त 2025

वर्षा ऋतु अपने उतरार्द्ध में अधिक यौवना हो गई है।

 ऐसा भी लगता है कि वर्षा ऋतु अपने उतरार्द्ध में अधिक यौवना हो गई है जहां जहां अभी तक पेड़ पौधे,बेलें,घास आदि प्यास से मर रहे थे और उदासीनता को अपना गहना समझ रहे थे उदासी में कभी-कभी गंभीरता दिखाई पड़ती थी और गंभीरता देखने में विचारवान लगती थी और इस बौद्धिकता का पुट वर्षाकाल में भी वर्षा ऋतु का बिछोह था।

वर्षा अपने अंतिम पड़ाव में जब उम्र के निकलने, आनंद के अधूरेपन को लेकर चिंतित हो उठी तो सहसा टूट कर बरसने लगी है और पेड़ पौधे ये गिलोय की बेल तो अच्छे से समझती है जब गिलोए की बेल को पेड़ नहीं मिले तो वह बिजली के खंभे के साथ लिपट जाती है आधुनिकता वनस्पति को विवशता में अपनानी पड़ती है लेकिन मनुष्य आहत हो उठता है वह वर्षा ऋतु की इच्छाओं को सहन नहीं कर पाते हैं वह वर्षा में टूटने वाले पहाड़ों को प्रकृति की विनाशलीला का नाम देते हैं और वर्षा ऋतु के गुजरने के पश्चात उन्हीं पहाड़ों में बम लगा कर उन्हें तोड़ते हैं।

वर्षा ऋतु को अपनी प्यास भी बुझानी है और प्रकृति के हर कण तक भी पहुंचना है यदि कहीं पर वह न पहुंच सके, फ़सल अच्छी नहीं हुई तो मनुष्य उसे भला बुरा कहते हैं यदि वह अपने मन भर बरस जाए तो उसे भला बुरा कहते हैं नदियों के रास्तों में घर बना कर उसका रास्ता रोक लेते हैं और जब वर्षा ऋतु उसे बहाकर लाए तो भगवान को गालियां देते हुए रोते हैं मनुष्यों से अच्छे पेड़ पौधे व वनस्पति हैं वह उगने, टूटने पर भी वर्षा से प्रेम करते हैं कोई शिकायत नहीं करते हैं अपना अहोभाग्य समझकर उसमें तत्लीनता से समाहित हो जाते हैं।


सूबे सिंह सुजान 

#वर्षा #ऋतु 



गुरुवार, 7 अगस्त 2025

कवियों का चुटकुले सुनाना कवि होने पर सवाल खड़े करता है सूबे सिंह सुजान

 कवि सम्मेलन में जो लोग चुटकुले सुनाते हैं वह स्वयं ताली बजाने के लिए भी कहते हैं और जो लोग उनकी बात मान लेते हैं अर्थात अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया और सुनकर हँसते हैं एक तो जो व्यक्ति चुटकुले सुना रहा है वह स्वयं को कवि बता रहा है जबकि वह कवि नहीं है और हम सब जो वह कह रहा है वह मान लेते हैं इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है कि वह व्यक्ति चुटकुले ऐसे सुनाता है कि उनमें कहीं भी कोई बात,तथ्य, विचार,तर्क,संभावना नहीं है सिर्फ वह फुहड़ता,गाली, लड़कियों व लड़कों के जननांगों पर गाली द्विअर्थी संवाद में देते हैं और लड़कियां वहां बैठी हुई बहुत हंसती हैं वह ख़ासतौर पर औरतों पर नंगेपन के चुटकुले सुनाते हैं और हम बिना समझे हंस रहे हैं।

हास्य-व्यंग्य बहुत सकारात्मक और सटीक विधा है आप हास्य व्यंग को कबीरदास,दुष्यंत कुमार,धूमिल और न जाने कितने असंख्य शायरों की शायरी में देख सकते हैं लेकिन उनमें कहीं भी फुहड़ता,नंगापन नहीं है लेकिन अत्यधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि हम वही लोग वहां बैठकर कैसे हंस लेते हैं जो हमारे ऊपर, हमारी संस्कृति, संस्कार, विश्वसनीयता पर हमला होता है हमें उसको सहन ही नहीं करना था लेकिन हम हंस रहे हैं?


कवि वह होता है जो काव्य के माध्यम से आपकी बुद्धि का योग करवाता है जो आपकी बुद्धिमत्ता को प्रखर करता है आपकी बुद्धि को खेल खिलाता है ताकि वह स्वस्थ रहे

और इसके लिए नये विचार या पुनः विचारों को अभ्यास में लाना या बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना होता है सामाजिक,देशकाल, व्यवहार, प्रेम, मनोरंजन, श्रृंगार,सदाचार, भक्ति,जीवनशैली,जीवन तत्वों के बारे सटीक बौद्धिकता को जागरूक करता है। 

यदि हम कुछ समय के लिए उच्च विचार विमर्श को सुनना शुरू करेंगे तो हमें उसमें आनंद भी आएगा और ज्ञान अर्जित भी होगा। उच्चता, श्रेष्ठता को समझने में आनंद है जो उच्च बुद्धिजीवी होते हैं वह गहरी अर्थपूर्ण कविता, ग़ज़ल, कहानी को सुनना व कहना पसंद करते हैं जो लोग केवल गंदे चुटकले पर हंसते हैं या सुनाते हैं वह दोनों प्रवृति के लोग निम्न चरित्र को अपनाना और प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।


सूबे सिंह सुजान 


हिंदी पर मुसलसल ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान

 हिंदी पर मुसलसल ग़ज़ल -


अपना स्वदेश भाव हिंदी में 

एकता का बहाव हिंदी में।

देश में रोज़गार या व्यापार,

और ही और बढ़ाव हिंदी में।

दादा, माता पिता बहन भाई, 

प्रेम, संबंध चाव हिंदी में।

सारी भाषाओं की यही सिरमौर,

जोड़ने का लगाव हिंदी में।

मन वचन कर्म भारतीय रही 

ऐतिहासिक रखाव हिंदी में।

भावनाओं का एक संगम है,

शत्रुता का अभाव हिंदी में।

कुल की रक्षा सदैव करती है,

चौधरी का दबाव हिंदी में।

देश भारत को जोड़ने का है,

सबसे ज़्यादा प्रभाव हिंदी में।


सूबे सिंह सुजान