रविवार, 31 जुलाई 2011
शब्द मंगल: पूनम दहिया की कविता
शब्द मंगल: पूनम दहिया की कविता: " दिशाओं के मृदंग बजने लगे .... इन्द्रधनुषी रंग सजने लगे धरा ने ओढ़ी चुनरिया धानी सावन आया संग ले, नय..."
शुक्रवार, 29 जुलाई 2011
मानसून
जिन दिनों मानसून चलती है
हर कली कपडों को बदलती है
मैं उसे देखकर उछलता हूँ,
वो मुझे देखकर मचलती है
जिंदगी बारिशों बिना क्या है,
जिंदगी बारिशों में खिलती है
बारिशें दोस्त एक उत्सव हैं,
इनसे घर-घर में शम्अ जलती है
मिट्टी के रोम-रोम में बसकर,
बूँद फिर आत्मा से मिलती है
सूबे सिहं सुजान
हर कली कपडों को बदलती है
मैं उसे देखकर उछलता हूँ,
वो मुझे देखकर मचलती है
जिंदगी बारिशों बिना क्या है,
जिंदगी बारिशों में खिलती है
बारिशें दोस्त एक उत्सव हैं,
इनसे घर-घर में शम्अ जलती है
मिट्टी के रोम-रोम में बसकर,
बूँद फिर आत्मा से मिलती है
सूबे सिहं सुजान
शनिवार, 16 जुलाई 2011
प्राइमरी का मास्टर: अशोक की कहानी – 1
good प्राइमरी का मास्टर: अशोक की कहानी – 1: "यह कहानी प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार द्वारा लिखी गयी है प्राथमिक शिक्षा के दृष्टिकोण को समझने के लिए यह कहानी एक माध्यम है एनसीईआरटी के नि..."
छह मई2001
झूठ की योजना विस्तार नही ले सकती
झूठ कोई भी पुरस्कार नही ले सकती
मर नही सकती जमाने से कभी सच्चाई,
झूठ सच का कभी अधिकार नही ले सकती
तुम अगर कोई कदम आगे बढाओगे नही,
कल्पना कोई भी आकार नही ले सकती
प्यार कायम है जमाने में हमेशा के लिये,
प्यार की जगह को तलवार नही ले सकती
प्यार के बदले तुझे प्यार मिलेगा मुझसे,
दिल दुखाकर मेरा तू प्यार नही ले सकती...
...............................सूबे.....सिहं...........सुजान................
झूठ कोई भी पुरस्कार नही ले सकती
मर नही सकती जमाने से कभी सच्चाई,
झूठ सच का कभी अधिकार नही ले सकती
तुम अगर कोई कदम आगे बढाओगे नही,
कल्पना कोई भी आकार नही ले सकती
प्यार कायम है जमाने में हमेशा के लिये,
प्यार की जगह को तलवार नही ले सकती
प्यार के बदले तुझे प्यार मिलेगा मुझसे,
दिल दुखाकर मेरा तू प्यार नही ले सकती...
...............................सूबे.....सिहं...........सुजान................
शुक्रवार, 15 जुलाई 2011
एक
टहनियाँ जब निकट गई देखो
ये लतायें लिपट गई देखो
तू हवा जोर-जोर से ना चल,
बेल की बाँह कट गई देखो
तुम पवन मस्ती में बहकती हो,
बेल से छाँव हट गई देखो
जब बरसने लगी घटा छम-छम,
भीगते ही चिपट गई देखो
आबरू आपकी ऐ हिन्दुस्तान,
सैंकडों बार लुट गई देखो
मोड कर मुंह चली गई तुम तो,
मेरी तकदीर मिट गई देखो..
दिनांक- 20 जनवरी 2000
ये लतायें लिपट गई देखो
तू हवा जोर-जोर से ना चल,
बेल की बाँह कट गई देखो
तुम पवन मस्ती में बहकती हो,
बेल से छाँव हट गई देखो
जब बरसने लगी घटा छम-छम,
भीगते ही चिपट गई देखो
आबरू आपकी ऐ हिन्दुस्तान,
सैंकडों बार लुट गई देखो
मोड कर मुंह चली गई तुम तो,
मेरी तकदीर मिट गई देखो..
दिनांक- 20 जनवरी 2000
गुरुवार, 14 जुलाई 2011
दिल के करीब गजल
क्या हुआ देख भावनाओं का
हो गया खून कल्पनाओं का
जड बने अब विचार लोगों के,
युग गया बीत चेतनाओं का
हाय आँसू नही बहा सकता,
दुख यहाँ देख वेदनाओं का
हो गया हूँ शिकार फिर देखो,
जिन्दगी में विडम्भनाओं का
कातिलों की शरन बने मन्दिर,
कुछ नहीं लाभ वन्दनाओं का
आदमी भी सदा रहा कैदी,
ईश्वर की उपासनाओं का
गरम लोहा उठा ले हाथों में,
मत मना रोष यातनाओं का
प्यार का देवता सिहरता है,
हो रहा मान वासनाओं का
प्रेम गायक सुजान ही होगा,
नवसृजनशील योजनाओं का
सूबे सिहं सुजान
हो गया खून कल्पनाओं का
जड बने अब विचार लोगों के,
युग गया बीत चेतनाओं का
हाय आँसू नही बहा सकता,
दुख यहाँ देख वेदनाओं का
हो गया हूँ शिकार फिर देखो,
जिन्दगी में विडम्भनाओं का
कातिलों की शरन बने मन्दिर,
कुछ नहीं लाभ वन्दनाओं का
आदमी भी सदा रहा कैदी,
ईश्वर की उपासनाओं का
गरम लोहा उठा ले हाथों में,
मत मना रोष यातनाओं का
प्यार का देवता सिहरता है,
हो रहा मान वासनाओं का
प्रेम गायक सुजान ही होगा,
नवसृजनशील योजनाओं का
सूबे सिहं सुजान
शुरूआती गजल
अब जिन्दगी के नियम जब बहुमुखी हो गये
तो आदमी प्यार पाकर भी दुखी हो गये
धर त्रासदायक हवा से झुलसते जा रहे,
सम्बंध परिवारों में अब तो तलखी हो गये
मजबूरियों से सहन करते हुये दर्द को
देखो सभी लोग अब अन्तर्मुखी हो गये
तो आदमी प्यार पाकर भी दुखी हो गये
धर त्रासदायक हवा से झुलसते जा रहे,
सम्बंध परिवारों में अब तो तलखी हो गये
मजबूरियों से सहन करते हुये दर्द को
देखो सभी लोग अब अन्तर्मुखी हो गये
गजल
हौंसले जब बुलंद होते हैं
काम मुठ्ठी में बंद होते हैं
लोग डरपोक तो हजारों हैं,
साहसी लोग चंद होते हैं
आदमी सोच भी नहीं सकता,
मन में कितने द्वंद होते हैं
लोग उनको पसंद करते हैं,
जो सभी को पसंद होते हैं
जिस तरह धूप और हवा महकें,
गीत में ऐसे छंद होते हैं
सूबे सिहं सुजान
काम मुठ्ठी में बंद होते हैं
लोग डरपोक तो हजारों हैं,
साहसी लोग चंद होते हैं
आदमी सोच भी नहीं सकता,
मन में कितने द्वंद होते हैं
लोग उनको पसंद करते हैं,
जो सभी को पसंद होते हैं
जिस तरह धूप और हवा महकें,
गीत में ऐसे छंद होते हैं
सूबे सिहं सुजान
शनिवार, 9 जुलाई 2011
sujanसुजान: गजल
sujanसुजान: गजल: "गगन में कोहरा छाया हुआ है के सूरज फिर से घबराया हुआ है समाकर इन दुखों ने मेरे अन्दर, मुझे पत्थर सा चमकाया हुआ है बनाकर सूली अपने वादों ..."
गजल
गगन में कोहरा छाया हुआ है
के सूरज फिर से घबराया हुआ है
समाकर इन दुखों ने मेरे अन्दर,
मुझे पत्थर सा चमकाया हुआ है
बनाकर सूली अपने वादों की,
सभी को उसने लटकाया हुआ है
खुशी से भोगकर ये आधुनिक सुख,
हर इक इन्सान पछताया हुआ है
सुनो ये चीखना वातावरण का,
ये मौसम आज उकताया हुआ है
मेरे नजदीक आकर देखना तुम,
सरल व्यवहार अपनाया हुआ है
क्यों ना दीवाने होंगे सब तुम्हारे,
बदन जो तेरा गदराया हुआ है
दिया है दर्द जो भी जिन्दगी ने,
सुनो इस गीत में गाया हुआ है
दिनांक- 2 अक्तूबर 2000 सूबे सिहं सुजान
के सूरज फिर से घबराया हुआ है
समाकर इन दुखों ने मेरे अन्दर,
मुझे पत्थर सा चमकाया हुआ है
बनाकर सूली अपने वादों की,
सभी को उसने लटकाया हुआ है
खुशी से भोगकर ये आधुनिक सुख,
हर इक इन्सान पछताया हुआ है
सुनो ये चीखना वातावरण का,
ये मौसम आज उकताया हुआ है
मेरे नजदीक आकर देखना तुम,
सरल व्यवहार अपनाया हुआ है
क्यों ना दीवाने होंगे सब तुम्हारे,
बदन जो तेरा गदराया हुआ है
दिया है दर्द जो भी जिन्दगी ने,
सुनो इस गीत में गाया हुआ है
दिनांक- 2 अक्तूबर 2000 सूबे सिहं सुजान
शुक्रवार, 8 जुलाई 2011
बरसात
दिल की भारी उमस के बाद
जब सब हो जाता है असहनीय
तुम बरस पडती हो तड-तड
यह अहसान होता है तुम्हारा
सारी पुरानी यादें करें गड-गड
और फिर बदल जाता है मौसम
मौसम में घुल जातें हैं हम
फिर हर कोई लगने लगता है अपना
और जन्म लेने लगता है नया सपना
तुम्हारा बरसना,हमारा तरसना
कितना मेल है, दो किनारों के बीच............
सूबे सिहं सुजान
जब सब हो जाता है असहनीय
तुम बरस पडती हो तड-तड
यह अहसान होता है तुम्हारा
सारी पुरानी यादें करें गड-गड
और फिर बदल जाता है मौसम
मौसम में घुल जातें हैं हम
फिर हर कोई लगने लगता है अपना
और जन्म लेने लगता है नया सपना
तुम्हारा बरसना,हमारा तरसना
कितना मेल है, दो किनारों के बीच............
सूबे सिहं सुजान