शनिवार, 9 जुलाई 2011

गजल

गगन में कोहरा छाया हुआ है
के सूरज फिर से घबराया हुआ है
समाकर इन दुखों ने मेरे अन्दर,
मुझे पत्थर सा चमकाया हुआ है
बनाकर सूली अपने  वादों की,
सभी को उसने लटकाया हुआ है
खुशी से भोगकर ये आधुनिक सुख,
हर इक इन्सान पछताया हुआ है
सुनो ये चीखना वातावरण का,
ये मौसम आज उकताया हुआ है
मेरे नजदीक आकर देखना तुम,
सरल व्यवहार अपनाया हुआ है
क्यों ना दीवाने होंगे सब तुम्हारे,
बदन जो तेरा गदराया हुआ है
दिया है दर्द जो भी जिन्दगी ने,
सुनो इस गीत में गाया हुआ है

दिनांक- 2 अक्तूबर 2000                 सूबे सिहं सुजान

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