शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

एक

टहनियाँ जब निकट गई देखो
ये लतायें लिपट गई  देखो
तू हवा जोर-जोर से ना चल,
बेल की बाँह कट गई देखो
तुम पवन मस्ती में बहकती हो,
बेल से छाँव हट गई  देखो
जब बरसने लगी घटा छम-छम,
भीगते ही चिपट गई देखो
आबरू आपकी ऐ हिन्दुस्तान,
सैंकडों बार लुट गई देखो
मोड कर मुंह चली गई तुम तो,
मेरी तकदीर मिट गई देखो..

   दिनांक- 20 जनवरी 2000
                                                         

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