यह जुमला बहुत बड़ा झूठ है*
दरअसल यह जुमला अपने आप को बचाने के लिए ही कहा गया होगा।
कैसे सबको एक जैसा कह सकते हैं ऐसा कभी नहीं होता।
सब एक जैसे न शक्ल से,काम से,दिल से नहीं हो सकते।
यह झूठ को प्रचारित करने व अपने ग़लत काम पर पर्दा डालने के लिए बोला जाता है।
सब एक जैसे किसी जगह पर नहीं हो सकते, किसी काम में नहीं हो सकते।
लेकिन यह जुमला वही लोग ज़्यादा कहते पाए जाते हैं जो खुद ग़लत काम करते हैं और ग़लत को प्रोत्साहित करते हैं व सच को, अच्छे आदमी को दबाते हैं वह एक सच्चे व्यक्ति पर भी जानबूझकर आरोप लगाते हैं ताकि उनके जुर्म छुप सकें उनका झूठ सामने न आए और लोग आपस में बहस करते रह जाएं वह बच कर निकल जाए।
नकारात्मकता यही काम करती है वह सकारात्मकता को भी उलझन में डाल देती है और ईमानदार निष्ठावान लोग अपने आपको साबित करने में लग जाते हैं और बेईमान लोग कभी इसकी परवाह नहीं करते वह जानते हैं ईमानदार अपनी ईमानदारी के चक्कर में रह जाएंगे और उसको बचने का मौका मिल जाएगा।
जो लोग यह कहते हैं कि हमाम में सब नंगे हैं वह झूठ को छुपाने व सच को दबाने के लिए ऐसा करते हैं।
सूबे सिंह सुजान
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