मंगलवार, 1 जनवरी 2019

NAZAM, NAYA SAL...नज़्म, नया साल

नज़्म      नया साल

इन दिनों पिछले साल आया था
पेड़ की टहनी पर नया पत्ता
वक्त की मार से हुआ बूढ़ा
आज आखिर वह शाख से टूटा ।

 जन्मदिन हर महीने आता था
और वो और खिलखिलाता था
 वो मुझे देख मुस्कुराता था 
मैं उसे देख मुस्कुराता था  ।

जिन दिनों वो जवान होता था 
पेड़ पौधों की शान होता था 
उस तरफ सबका ध्यान होता था 
और वो आंगन की शान होता था  ।

उसके चेहरे में ताब होता था
मुस्कुराना गुलाब होता था 
और बदन पर शबाब होता था
हर जगह कामयाब होता था  ।

धीरे धीरे वो फिर पड़ा पीला
क्यों हुआ ऐसा कुछ नहीं समझा
पहले तो एक दाँत ही टूटा
फिर हुआ उसका तन -बदन झूठा ।

हर कोई दिल को तोड़ जाता है
आँसुओं को निचोड़ जाता है
साथ आखिर में छोड़ जाता है
फुर्र से वक्त दौड़ जाता है ।

वक्त की नींद धीरे से टूटी
मेरी अस्मत तो वक्त ने लूटी
मैं गिरा तो मेरी जगह छूटी
फिर मेरे बाद कोंपलें फूटी ।

सूबे सिंह  "सुजान"

कुरूक्षेत्र,हरियाणा ।
9416334841

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