गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ
अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ
इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना
हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ
चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं
बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ
जितने पशु पक्षी थे, उतने वाहन हुए
भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
कम दिनों के लिए होते हैं वलवले
शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
अब न इंसानियत की हवा लग रही
इस तरफ आजकल बंद हैं खिड़कियाँ
क्रोध की आग है आग से भी बुरी
फूँक दो आग में मन की सब तल्ख़ियाँ
इक नज़र खुश्क मौसम पे जो डाल दो
बोलना सीख जायेंगी खामोशियाँ
रास्ता अपने जाने का रखने लगीं
आजकल घर बनाती हैं जब लड़कियाँ
प्रश्न यह पूछना आसमाँ से "सुजान"
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
सूबे सिंह सुजान
अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ
इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना
हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ
चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं
बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ
जितने पशु पक्षी थे, उतने वाहन हुए
भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
कम दिनों के लिए होते हैं वलवले
शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
अब न इंसानियत की हवा लग रही
इस तरफ आजकल बंद हैं खिड़कियाँ
क्रोध की आग है आग से भी बुरी
फूँक दो आग में मन की सब तल्ख़ियाँ
इक नज़र खुश्क मौसम पे जो डाल दो
बोलना सीख जायेंगी खामोशियाँ
रास्ता अपने जाने का रखने लगीं
आजकल घर बनाती हैं जब लड़कियाँ
प्रश्न यह पूछना आसमाँ से "सुजान"
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
सूबे सिंह सुजान
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