गुरुवार, 10 जनवरी 2019

भारतीय संस्कृति को क्षत विक्षत करती यूरोपीय संस्कृति

भारतीय  संस्कृति को वैसे तो यूरोपीय व पाश्चात्य संस्कृति बहुत समय से नुकसान पहुँचा रही है  लेकिन पिछले गुजश्ता दस बरसों से बहुत ही तीव्र गति से नुकसान हो रहा है जैसे जैसे संचार के साधनों का तंत्र विस्तार रूप ले रहा है तैसे तैसे पाश्चात्य संस्कृति की आँधी भी तेज गति से आ रही है जो कि भारतीय संस्कृति के उस पहलू को नष्ट कर रही है जिसमें भारत के नागरिक  अपने  बच्चों को वह शिक्षा देते थे जिसमें व्यवहारिक काम करने, बडों का आदर करना, सबको एक बराबर नजर से देखना, दूसरों के दर्द को समझना, सभी प्रकार के जीव जन्तुओं में जीव भाव देखकर नुकसान न पहुँचाना , समय के साथ व मौसम के व्यवहार के साथ जीवन को संचालित करना, दूसरों को हराने की नहीं वरन साथ लेकर चलने की पंरपरा में जीना, अपनी खाद्य सामग्री को वर्ष भर के लिये एकत्रित करके रखना अर्थात प्राकृतिक साधनों का अनावश्यक रूप से दोहन न करना और सादा जीवन उच्च विचार के साथ जीवन व्यतीत करना आदि आदि ।

                                                                                          आज भारतीय संस्कृति के यह मूल्य नष्ट हो रहे हैं बच्चे काम करने की पंरपरा से दूर होते जा रहे हैं वे केवल स्वंय के लिये काम करते हैं और वह भी केवल एक समय तक के भोजन की चिंता करना अगले पल के लिये सोचते ही नहीं जिससे महामारी व मौसम की विपदाओं के समय मनुष्य कैसे अपना बचाव करेगा यह गम्भीर समस्याओं में से एक हो रही है सहनशीलता समाप्त होती जा रही है नये बच्चे साधारण सी बात पर  अपना धैर्य खो देते हैं जिससे मानव मूल्यों का पतन हो रहा है सहनशील होना मनुष्यों का समरसता का गुण है जो मानव को मानव बनाये रखता है वरना तो मानव पशु बना जाता है ।
                 प्रकृति में मनुष्य ही सभी पशु पक्षीयों के लिये मानक तय करता है पूरी पृथ्वी पर मनुष्यों ने ही कब्जा कर रखा है सभी संसाधनों को अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर रहा है जबकि प्रकृति ने सभी संसाधनों को सभी जीव जन्तुओं के लिये बराबर बनाया है लेकिन मनुष्य सभी का हक अकेले खा रहा है िस प्रकार से मनुष्य सबसे खतरनाक प्राणी है जो प्रकृति को नष्ट कर रहा है ।

                                                                                      सभी प्रकृातिक खतरों को देखते हुये कहना न होगा कि हमें पूरे विश्व को पुरातन भारतीय संस्कृति की शिक्षा देनी जरूरी हो जाती है जो संस्कृति मनुष्य को मानव बना कर रखती है और प्रकृति के साथ तालमेल करके जीवन बसर करने को प्रेरित करती है भारतीय संस्कृति  का इतिहास मानव समाज में सबसे पुराना है इसलिये ही भारतीय संस्कृति सबसे लम्बी अवधि की रही है क्योंकि इसमें सहनशीलता अधिक ही है प्राकृतिक संसाधनों के साथ, मौसमों के साथ अधिक तालमेल के साथ जीवन यापन किया गया है इस संस्कृति पर सुविधाभोगी संस्कृति ने ही हमला किया है यूरोपीय व पाश्चात्य संस्कृति केवल सुविधाभोगी है जो कि मानव को अपनी सुविधा के लिये सभी संसाधनों को नष्ट करने को प्रेरित करती आ रही है जिससे वर्तमान समय में तीव्र गति से समाज सुविधा के मोहपाश में बंधकर पृथ्वी को ही नष्ट करने के मुहाने पर आ खडृा हुुआ है भारतीय संस्कृति को सुविधाओं की पाश्चात्य संस्कृति ने हानि पहुँचायी है विश्व को बचाने के लिये भारतीय संस्कृति को अपनाना बेहद जरूरी हो जाता है ।

                                                                                                                सूबे सिंह सुजान
                                                                                                         कवि व शिक्षक
                                                                                                              कुरूक्षेत्र
                                                                                                                हरियाणा 

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