बुधवार, 16 नवंबर 2011

गजल

. गण हुये तन्त्र के हाथ कठपुतलियाँ
 अब सुने कौन गणतन्त्र की सिसकियाँ
. इसलिये आज दुर्दिन पडा देखना
 हम रहे करते बस गल्तियाँ-गल्तियाँ
 चील चिडियाँ सभी खत्म होने लगीं
 बस रहीं हर जगह बस्तियाँ-बस्तियाँ
 पशु-पक्षी जितने थे उतने वाहन हुये
 भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
. कम दिनों के लिये होते हैं वलवले
 शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
 प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
                                       सूबे सिहं सुजान

1 टिप्पणी:

  1. प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
    निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ

    Bahut sundar panktiyan.
    My Blog: Life is Just a Life
    My Blog: My Clicks
    .

    जवाब देंहटाएं