गुरुवार, 14 जुलाई 2011

शुरूआती गजल

अब जिन्दगी के नियम जब बहुमुखी हो गये
तो आदमी प्यार पाकर भी  दुखी  हो  गये
धर त्रासदायक हवा से झुलसते जा रहे,
सम्बंध परिवारों में अब तो तलखी हो गये
मजबूरियों से सहन करते हुये  दर्द को
देखो सभी लोग अब अन्तर्मुखी हो गये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें