मैं यह सोच कर कविता लिखता हूं कि कुछ नया कह पाया, फिर अगले दिन, फिर कोई और कविता लिखता हूं लेकिन हर बार यह सोचकर लिखा कि जो मेरे अंदर लिखने की, कहने की प्यास, भावना है वह लिख सकूं,कह सकूं परंतु यह क्रम चलता रहता है जो अधूरापन है वह पाटने की कोशिश लगातार चली है लेकिन क्या वह कभी पूरी हुई? कभी नहीं।
यदि मैंने कुछ अच्छा सा कह लिया और कुछ समय यह अहसास होता है कि बस यही सबसे बेहतर है इससे आगे कुछ नहीं कह सकता, लेकिन फिर कुछ समय बाद वही कहने की प्यास, उतावलापन उभर आता है।
दुनिया में जाने कितने ऋषि,संत, कवि, लेखक अपनी अपनी बात कहते हुए चले गए सब इसी क्रम में कहते रहे और वह प्यास,भूख आज भी कायम है और रहेगी।
यही जीवन है यह जीवन जीने का, चलने का, क्रम निरंतर जारी है और रहेगा।
हम सब प्यासे हैं और प्यासे ही रहेंगे जब लोग कहते हैं कि प्रेम में तुम्हें पाकर मैं सब कुछ पा लूंगा, मुझे तू चाहिए और कुछ नहीं वह पागलपन एक प्यास है वह व्यक्ति कुछ समय बाद फिर उससे ऊब जाता है और हर जगह देखता है और तो और उससे छुटकारा चाहते हैं और फिर कुछ और चाहता है फिर वही प्यास है।
यही क्रम जन्म लेने और मरने का है हम सब जन्म लेते हैं और उसके बाद सब चाहते हैं कि हम कभी न मरें,कभी न बीमार हों सारी तरह की विधि,योग,विज्ञान,औषधी अपनाते हैं लेकिन आखिर मर जाते हैं हमारा जन्म कुछ पाने की लालसा है एक प्यास है लेकिन यह कभी पूरी नहीं होती लेकिन जो बीच का क्रम रहा वह हमें पता है वह पता भी तभी तक है जब तक हैं आगे क्या होगा नहीं पता।
हम सब अधूरे हैं हम सब प्यासे हैं हम सबने जन्म लिया है,हम सब मरेंगे हम सब पूर्ण हैं मगर हम सब अधूरे हैं।
हम आकाश हैं जो न शुरू का पता न अंत का पता,हम सब गिनती हैं जहां से मान लिया कि एक से शुरू हुई बस वहीं से शुरू हो गई ख़त्म कहां होगी हमें नहीं पता
हम सब खिलने वाला फूल हैं जो खिलेगा,जो खिल चुका है,जो बिखर चुका है,जो विलीन हो गया है।
सब साहित्य अधूरा है सब विज्ञान अधूरा है भूख अधूरी है रास्ते अधूरे हैं,सब भगवान पूरे हैं और सब भगवान अधूरे हैं।
मैंने हल्दी की गांठ को लगाया और उससे अनेक हल्दी की गांठ बन गई यह हल्दी की गांठ कहां से आई थी क्या यह गांठ कभी ख़त्म हो गई तो क्या फिर हल्दी नहीं उग सकेगी?
यह हल्दी अधूरी है यह बार बार लगाई जायेगी और काटी जाएगी मगर यह फिर भी उगेगी।
अनंत ही पूर्ण है अनंत ही अपूर्ण है।
सूबे सिंह सुजान
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