शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल- हर बात तुम्हारी मुझको याद रही बरसों

ग़ज़ल हर बात तुम्हारी,मुझको याद रही बरसों। चुपचाप बही,इस दिल में ग़म की नदी बरसों।। मैं याद तुम्हें करने में,भूल गया ख़ुद को, जीवन की खुशी मेरी, गुमनाम हुई बरसों। इस मोड़ खड़ा होकर,हर रोज़ निहारा है, इस गांव के स्टेशन पर, गाड़ी न रुकी बरसों। इक आह! महब्बत ने,बारूद बनाया है, अब युद्ध बनी तन्हाई,आग दबी बरसों। हर शब्द में, अपने दिल को, खोलने की सोची, दिल खोल नहीं पाया, ग़ज़लें तो लिखी बरसों। मैंने ये उदासी, तन्हाई में पकाई है, अब फूल खिलेंगे,दी आंसू ने नमी बरसों। सूबे सिंह "सुजान" कुरूक्षेत्र

1 टिप्पणी:

  1. ग़ज़ल हर बात तुम्हारी,मुझको याद रही बरसों।
    चुपचाप बही,इस दिल में ग़म की नदी बरसों।।
    बहुत खूब सुजान जी।👌👌👌👌ये यादें बेरहम है पीछा कहाँ छोड़ती हैं 🙏🙏

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