शनिवार, 15 मार्च 2014

विदाई एक जीवन प्रक्रिया

जीवन एक प्रक्रिया है जिस प्रकार सौर परिवार अपनी निश्चित प्रक्रिया में चलता है और उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया मानव जीवन पर प्रभाव डालती है। उसी प्रकार मानव जीवन, परिवार, समाज, रिश्ते-नाते,मधुर सम्बन्ध,क्रोध, प्रसन्नता आदि भाव मानव के आस-पास आते व जाते रहते हैं। जो सम्बन्ध एक समय में अपरिचित होते हैं वही गूढ बन जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता कि कब हम किसी के भाव,विचार,या प्रेम में समाहित हो जाते हैं।

                                                                           मानव का जीवन सदैव सुख व दुख को महसूस करने में ही बीतता है वह सुख के पीछे ही दौडता रहता है और जिस समय उसे दुख मिलता है तो वह उसी समय ठीक से अपने सुख को पहचानता है। जब हम अपने जीवन के अभिन्न अंग से जरा सा भी दूर होते हैं तो पता चलता है कि हम उन लोगों या रिश्तों को कितने हल्के से ले रहे थे फिर हमें असलीयत का पता चलता है।  जिस प्रकार आदमी संसार में आता है।  उसी प्रकार विभाग में आता है। जिस विभाग में हम जिस समय काम करने आये थे, उसी समय यह भी निश्चित हो गया था कि हमें निश्चित समय पर चले भी जाना है। इस जाने की तिथि का हमें उसी समय पता चल जाता है। और हम धीरे-धीरे जीवन यापन करते हुये सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हुये समझ ही नहीं पाते कि कब इतना लम्बा समय गुजर गया। और एकदम से ये एहसास होता है हमें अरे हमने तो अभी कुछ भी नहीं किया है। अभी तो हमें और भी जीना है। मनुष्य की यही लालसा रहती है जीते दम तक। और कंही न कंही यही जीने की लालसा रहनी भी चाहिये। क्योंकि जीने की लालसा हमें जीवन में ठहराव महसूस नहीं होने देती। और हम अबाध गति से जीवन को जीते हुये चले जाते हैं । बस हमें जीवन रूपी गाडी में चलते समय हर स्टेशन पर रूकना जरूर चाहिये, कि कंही कोई यात्री छूट न जाये।  किसी का सामान छूट न जाये। हमारी वजह से कोई दुखी न रह जाये। नौकरी और जीवन एक दूसरे के परस्पर बराबर हैं जैसे व्यक्ति जीवन जीता है उसमें सब कुछ सुख व दुख को महसूस करते हुये जीता है, ठीक उसी प्रकार नौकरी भी है व्यक्ति को नौकरी में वही सारी परेशानियाँ,खुशियाँ, दोस्तों का साथ व दुशमनों का सामना करना पडता है। और पुरूष की अपेक्षा एक महिला को भारतीय समाज में और भी ज्यादा परेशानियों का सामना करके निडरता के साथ नौकरी करनी पडती है।

 

 

      ( विदाई गीत ) ( संगीत धुन व बहर--- तुम्हीं मेरी पूजा तुम्हीं देवता हो……)

1   2    2   1    2    2    1   2    2   1   2    2   

विदा हो रहे हो, विदा हो रहे हो

हमारे लिये तुम सजृा हो रहे हो……..

 

नियम जिन्दगी के अनोखे बडे हैं

वफ़ा भी बहुत और धोखे बडे हैं 

वफ़ा करके तुम बेवफ़ा हो रहे हो

विदा हो रहे हो,विदा हो रहे हो………..

 

बहुत सीख पाये, बहुत लालसा है

मगर क्या करें जिन्दगी हादसा है

हमारे लिये आइना हो रहे हो

विदा हो रहे हो, विदा हो रहे हो………

 

ये जीवन की रस्में निभानी पडेंगी

ये तकलीफ़ें हमको उठनी पडेंगी

खुशी से चलो हम जुदा हो रहे हैं 

विदा हो रहे हैं, विदा हो रहे हो………..

………………………………………………सूबे सिंह सुजान…………………….

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