प्रोफेसर सत्य प्रकाश “तफ़्ता” ज़ारी ऊर्दू अ़रूज़ के, ऊर्दू अदब में जाने माने (हस्ताक्षर) शाइर हैं। वे स्वर्गीय क़िब्ला डा.ओम प्रकाश अग्रवाल (“ज़ार” अल्लामी) की ज़ानशीनी है । उम्र अब जाने लगी है। वे अकेले बिन पुत्र के व बिना पेंशन के जीवन यापन कर रहे हैं जो आज के मंहगाई के युग में बहुत ही कठिन काम है।वे कुरूक्षेत्र विश्वविधालय कुरूक्षेत्र में प्राणी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर,विभागाध्यक्ष एंव डीन सांईस फ़ैकल्टी के पद से 30 नवम्बर 1993 को सेवानिवृत हुये हैं सरकार ने ऐसे वरिष्ठ साहित्यकारों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है। मुझे उनसे थोडा बहुत सीखने का मौका मिला है। वे जीवन भर ऊर्दू अदब की सेवा करते रहे। ऊर्दू के कद्रदाँ लोगों नें भी इस महान आत्मा की ओर एक हल्की सी नज़र उठा कर देखने की ज़हमत नहीं उठाई । आज तक हरियाणा की ऊर्दू अकादमी ने ऊर्दू के लोगों को जो हरियाणा के निवासी भी हैं,और जिन्होने वास्तव में ऊर्दू के लिये काम किया है उनको अकादमी के महत्वपूर्ण पद पर स्थान नहीं दिया। जो सही मायनों में ऊर्दू का प्रचार- प्रसार कर सकते थे। जो ऊर्दू को भलि-भांति जानते भी हैं जिन्होंने ऊर्दू को जीया भी है।लेकिन सियासत की अंधी गलियों में अदब की जगह भी अंधेरा है। यहाँ भी खूब सियासत होती है।
तफ़्ता साहब ने कभी किसी चीज की मांग ही नहीं की, वे तंगहाल को पसंद करने वाले लोगों में से एक हैं उनकी शख़्शियत किसी के आगे हाथ फैलाने वालों में से नहीं है। वे जिन्दगी भर अपने ऊसूलों को निभाते रहे हैं। आजकल बीमारी व गरीबी में जी रहे हैं लेकिन किसी से कोई सहायता मांगने तक नहीं जाते। यहाँ तक कि जब अदबी संगम कुरूक्षेत्र की निश्शत होती है तो जब मैंने कंई बार कहा कि गुरू जी मेहर चंद धीमान जो कि उनके पास में ही रहते हैं जब वे आते हैं तो आप उनके साथ ही आ जाया करो। लेकिन कभी उनसे इतना कहना नहीं चाहते कि आप मुझे लेते चलना। अगर किसी को लगता है कि मुझे ले जाएंगे या स्वंय ले जाने की हिम्मत है तो ठीक वरना वे किसी को नहीं कहते यह खुद्दारी वे कभी नहीं छोड पाये।
ऊर्दू में प्रकाशित पुस्तकें-1.नुकूशे-नातमाम ( ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह ) 2. हिना की तहरीर- ( ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह ) 3. एहसास- (देवनागरी)- (ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह) तथा “फ़ैज़” अहमद “फ़ैज़” की नज़्मों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है। वे डा. आर.पी.शर्मा “महर्षि” के गुरू भाई हैं। डा. आर.पी. शर्मा “महर्षि” स्व. डा. हरिवंश राय बच्चन के समकालीन कवियों,शायरों में से हैं जो कि आजकल भी ए-1, वरदा,कीर्ति काँलेज के निकट,वीर सावरकर मार्ग,दादर (प.) मुम्बई ( महाराष्ट्र ) में साहित्य की सेवा कर रहे हैं।
आप सब साहित्यअनुरागियों से निवेदन व अपील मैं अपने बूते से कर रहा हूँ कि आप उनके 12- से 15 ऊर्दू की ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर को, जो कि अप्रकाशित हैं आर्थिक अभाव के कारण, को प्रकाशन के लिये आर्थिक दान करके प्रकाशित करवाने में भूमिका निभा कर साहित्य व समाज की सेवा कर सकते हैं। तथा ईशवरीय,मानवीय तथा समाजिक रूप से दुआऐं प्राप्त कर सकते हैं। डा. “तफ़्ता” जी का मोबाइल न.09896850699 है तथा मेरा 09416334841 है। आप सब जागरूक समाजिक लोगों की प्रतीक्षा में।।।। नाचीज़--- सूबे सिंह “सुजान”
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