रविवार, 18 सितंबर 2011

गजल-17-9-11

हम उनसे पहली दफा मिलके खिलखिलाये बहुत
पर उसके बाद मेरे नैन डबडबाये बहुत
हमारी चाह हमें मौत तक ले जाती है,
समेट लेने की चाहत ने लूट खाये बहुत
नजर तो लौटती है बिन कहे तआकुब में,
जिसे न देखा हकीकत में वो दिखाये बहुत
मुझे मिला है जमाने से खोखलापन सिर्फ,
कदम-कदम पर जो मुझे नीचा दिखाये बहुत
                             सूबे सिहं सुजान

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