मेरी आलोचना जरूरी है
कुछ नया सीखना जरूरी है।
शब्द दर शब्द सीखना होगा,
शब्द की साधना जरूरी है।
अब रचो मानवीय तकनीकें,
क्योंकि संवेदना जरूरी है।
मूंग,अरहर,उड़द तो हैं लेकिन,
दाल में कुछ चना जरूरी है।
नल खुला छोड़ दे अगर टीचर,
बच्चों को देखना जरूरी है।
मेरे अंदर कमी हजारों हैं,
इस तरह सोचना ज़रूरी है।
मैं ग़ज़ल में गिलोय रस भर दूं,
अब नयी योजना जरूरी है।
सूबे सिंह सुजान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें