वे स्वयं को प्रगतिशील व मानवता का प्रहरी कहते नहीं थकते थे।
मैंने बचपन से अब तक साहित्य लेखन व साहित्यिक कार्यक्रमों में भागीदारी की है और साहित्यिक आयोजन स्वयं करवाता रहा हूं और साहित्य संस्था को अग्रणी बनाने में अपनी हर संभव से आगे बढ़ कर कोशिश करता रहा हूं।
कईं दफा वह प्रगतिशील विचारधारा के मित्र मेरे साहित्य कार्य पर भूरि भूरि प्रशंसा करते थे लेकिन
एक बार जब उनके विचारों के प्रतिकूल विचार सामने रखे तो वह आपा खो बैठे और गालियां देने लगे मैंने उनको याद दिलाया कि आप मानवाधिकारों के प्रहरी हैं लेकिन थोड़ा सा दूसरे को कहने का अधिकार नहीं देते यह कैसा प्रगतिशील व मानवता है?
और उन्होंने गुस्से में अपनी लिखित प्रशंसा वापिस मांगी और पुनः लिखित में आलोचना कर डाली।
अर्थात उनके विचारों के साथ जो बात मेल खाती है वही कहें अन्य कुछ न कहें और यदि कोई कहे तो वह थूक कर चाट लेते हैं।
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