धुआं जम गया है, हवा की कमी से।
कोई जैसे नाराज़ है ज़िन्दगी से।।
न अब धूप अच्छी न मौसम खुला है,
गगन को,धरा को, ढका है नमी से।।
हवा,आग, पानी खफा हो गए हैं,
शिकायत है आकाश को आदमी से।
हमीं ने बनाये, उदासी भरे दिन,
कि मौसम मिले आज बेमौसमी से।
हमें खेत जंगल बनाने पड़ेंगे,
हमारी हवा ठीक होगी उसी से।
सूबे सिंह सुजान
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