पतन तो सहज है।उत्थान सहज नहीं है।
रावण रोज़ जन्म लेता है,राम रोज़ जन्म नहीं लेता।
राम के लिए हमें क्षण क्षण परिश्रम करना करना होगा। लेकिन हम तत्परता से,तत्लीनता से, निरंतर परिश्रम नहीं कर सकते, ध्यान से, भक्ति से, इसलिए राम जन्म नहीं ले पाते,रावण हमारे आराम, सुविधा से जन्म लेता है और हम हर रोज़ सुविधा बढ़ाने में लगे हैं अर्थात रावण को जन्म लगातार दे रहे हैं । ध्यान से, भक्ति से , चिंतन से, ज्ञान व सहजता आती है।
पतन के लिए हम कोई विशेष अभ्यास नहीं करते, कोर्स नहीं करते लेकिन वह फिर भी हमें आता है।
जैसे रोशनी हर तरफ बिखरती है वैसे जिन्दगी हर तरफ बिखरती है। जिन्दगी को जितना बिखराओ उतना बिखर जाती है। और उतना ही मजा जिन्दगी देती है। लेकिन ये उस मजा लेने वाले को ही पता है। हर किसी को नहीं। और लोग यही सोचते रहते हैं कि हम समझदार हैं जबकि दुनिया में जितना देखा जाये दुनिया को उतना ही मजा है। जिसने दरवाजे के भीतर ही दुनिया देखी है उसे बाहर की दुनिया का क्या पता है।
सूबे सिंह सुजान
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