बुधवार, 15 अप्रैल 2020
कविता -- असहमतियाँ
असहमतियाँ
हमेशा प्रकृति के खिलाफ होती हैं
जो हमारी इच्छाओं का पुलिंदा हैं
बरसात नहीं आई तो असहमति
आई तो असहमति ।
गर्मी हुई तो असहमति
नहीं हुई तो असहमति
धूप, हवा, के साथ भी
ऐसा ही व्यवहार प्रकट करते हैं ।
नदियों को मोड़ना
मनुष्य की आसानी है
किन्तु प्रकृति से छेड़छाड़ है ।
असहमतियाँ मनुष्य का विस्तार बढ़ाती हैं
और प्रकृति को सीमित करती हैं ।
एक इंजन मनुष्य के काम आसान करता है
लेकिन प्रकृति का शोषण करता है ।
प्रेम के लिए प्रथम भाव में असहमति सहन करना सबसे कठिन है
लेकिन सत्य प्रेम ही असहमति सहन करता है
जैसे प्रकृति बहुत सहन करती है लेकिन हद से ज्यादा
तो प्रकृति भी सहन नहीं करती है वह सीमाओं को लांघने पर रूदन करती है तांडव करती है ।
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