*फितरत*
लोगों को काम करवाने के लिए जो व्यक्ति अच्छा लगता है लेकिन पुरस्कार देने के लिए वो नहीं चाहिए क्योंकि पुरस्कार तो ख़ुद के लिए चाहिए।
लेकिन उनकी तो फितरत है जिनको अपने कसीदे पढ़ते हुए शर्म नहीं आती कि काम कुछ किया नहीं होता और अपनी बढ़ाई अपने मुंह कर रहे होते हैं परन्तु उनकी क्या मज़बूरी है जिनको पुरस्कार देना है और जबकि काम जिनको कहा उन्होंने किया नहीं और जिसने किया है उससे बात तक करने में परहेज़ रहता है?
आदमी इस तरह स्वार्थी होता है और इस स्वार्थ में लिप्त रहते उसको सही व ग़लत में फ़र्क नज़र नहीं आता।
और प्रकृति अपना काम करती रहती है हम प्रकृति में कमियां ढूंढते रहते हैं जबकि कमियां पाती नहीं हैं परन्तु आदतन अपने आपको बेहतरीन कहने के आदी होते हैं।
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