शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

#अनकही 1 यथार्थ कहानी। #अपना धोखा

पिता जी अनपढ़ व बहुत भोले भाले थे वे दूसरे व्यक्ति की चालबाजी को नहीं समझते थे और इस वज़ह से ज़िन्दगी में अनेक बार धोखा खाया, या यूं कहें कि धोखा खाते खाते अपनी भूख मिटाते थे।

  • भारत में जिस समय कृषि परांपरागत तरीके से की जाती थी और सबसे प्रथम समय में बिजली के ट्यूवैल से खेती की जाने लगी तो हमारे गांव में शायद केवल पहला बिजली से संचालित ट्यूबवेल लगा था और उसके सं
को ठीक प्रकार शिक्षित लोग कर पाते थे। लेकिन पिता जी यह सीखाने के बाद तो कर सकते थे लेकिन उनके बड़े भाई के तो बेटे शिक्षित थे जो अपना खेती का कार्य तकनीक को समझ कर कर लेते थे परन्तु छोटे भाई जो गांव में केवल पहले स्नातक व्यक्ति थे, वे कोई भी जानकारी न देकर हर बात में मज़ाक उड़ाते थे व धूर्तता पूर्वक व्यवहार करते थे।

जब पहले वर्ष धान के खेत में बिजली के ट्यूवैल से पानी दिया जाता था तो सबके खेत में पानी लगाने की बारी आती थी चार भाईयों के खेत में पानी देने की बारी निश्चित कर दी गई थी सब अपने समय पर पानी देने लगे व धान रोपाई हो गई थी।
जब पिता जी के खेत में सबसे बेहतर धान की फ़सल लहराने लगी तो खेत सबके आकर्षण का केन्द्र बन गया और उनकी मेहनत की तारीफ होने लगी।
अब धान की फ़सल दाना लेने की तैयारी में थी और बरसात का मौसम जा चुका था तो खेत में पानी केवल ट्यूबवेल से ही संभव था तो सब अपनी अपनी बारी पर पानी दे थे। अब जिस दिन पिता जी की पानी की बारी थी तो चाचा जी ने बिजली के फ्यूज को हटा दिया जिससे मोटर बिजली होने पर भी नहीं चली, पिता जी ने अपने भाई को कहा कि भाई देखना पानी की मोटर नहीं चल रही है जबकि बिजली है तो चाचा ने कहा कि मुझे क्या मालूम,तू खुद पता कर तेरी बारी है पिताजी ने दरख्वास्त भी कई,हाथ जोड़कर विनती की लेकिन वे अनपढ़ गंवार कहते हुए चले गए।
उसके बाद पिता जी ने अपने बड़े भाई के बेटों से निवेदन किया, लेकिन उन्होंने कहा कि तू और तेरा भाई जाने हमें क्या लेना? 
इस तरह एक बारी निकली, फिर चार दिन बाद बारी आई वह भी उसी तरह चाचा जी की मेहरबानी से निकल गई और ऐसा करते करते फ़सल उस समय सूख गई जब उसमें दाने पड़ने वाले थे।
पिताजी और मां दोनों सबकी ओर आस भरी निगाहों से देखते लेकिन कोई मदद नहीं करता मां पिताजी के बड़े भाई के बेटों का खाना बनाती थी क्योंकि ताई बहुत ज्यादा बीमार थी और उन चारों बड़े भाइयों की उद्दंडता को भी झेलती थी लेकिन जब फ़सल सूखने की बात करती तो वे खूब हंसते।
इस तरह फ़सल सूख गई और मां व पिता को रोते रोते  गांवके लोगों से खाने के लिए भी मांगना पड़ा और हम चार छोटे छोटे भाइयों का पेट भरना पड़ा था यह सब देखकर चाचा बहुत खुश था जैसे उनकी मुराद पूरी हो गई थी।

सूबे सिंह सुजान

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें