पिछले दिनों एक परिचर्चा हो रही थी, जिसमें गद्य काव्य को परिभाषित करने पर चर्चा थी।
जब हमारे पास अनेक काव्य विधा उपलब्ध हैं तो उसके बाद भी हम ऐसी काव्य विधा को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं जो अपने नामकरण से ही यह स्पष्ट करती है कि वह कोई एक स्पष्ट विधा नहीं है किसी विषय या विधा का स्पष्ट होना बहुत आवश्यक है यदि वह स्वयं ही स्पष्ट नहीं है तो हम उसके साथ जबरदस्ती या बलात्कार कर रहे हैं यह स्वयं स्पष्ट हो जाता है।
यह एक उदाहरण से और स्पष्ट हो जाता है यह इस प्रकार है कि जैसे कोई शराबी एक या दो पैग पीने के बाद अपने आनंद के योग्य हो जाता है (जिसे वह आनंद कहता है) अर्थात उसे आवश्यक नशा हो जाता है परन्तु वह उसके बाद भी अनेक प्याले पीता है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी बस वह और परेशानी को बढ़ाने की कोशिश करता है,वह समस्याग्रस्त हो रहा होता है,उसे यहां तक चैन नहीं है वह अपने लिए व अन्यों के लिए जटिलता पैदा कर रहा होता है।
इसी प्रकार हम गद्य काव्य कहने के साथ कर रहे हैं हम अनावश्यक प्रयोग कर रहे होते हैं हम लेखन में जटिलता पैदा कर रहे होते हैं जब हमारे पास अपनी बात कहने के लिए अनेक गद्य विधा उपलब्ध हैं व अनेकों काव्य विधा उपलब्ध हैं तो उसके पश्चात भी हम काव्य विधा से छेड़छाड़ क्यों कर रहे हैं?
इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि यह नव प्रयोग है हां नव प्रयोग होने चाहिए लेकिन प्रयोग ऐसा भी न होना चाहिए जो स्पष्ट ही न हो और वह अनावश्यक जटिलता पैदा न करता हो।
हम मनुष्य जीवन के विकास पर एक नज़र डालें तो पाएंगे कि मनुष्य में पुरुष, पुरुष ही है और स्त्री, स्त्री ही है। दोनों का मिश्रण नहीं हुआ है हां कुछ अपवादों को छोड़कर, लेकिन अपवाद जो हुआ है वह फलित नहीं हो सकता उसका कोई उद्देश्य नहीं हो पाया वह प्राकृतिक नहीं हो पाया।
मनुष्य के कर्मिक विकास प्रक्रिया के प्रमाण हजारों वर्षों तक के उपलक्ष्य हैं हमारे पास रामायण, महाभारत व वैदिक संस्कृति का साहित्य उपलब्ध है जिससे हजारों वर्षों का मनुष्य का जीवन व विकास का पता चलता है जिससे हम यह अनायास जान सकते हैं कि मनुष्य मौलिक रूप से आज भी वही है। लेकिन मनुष्य ने जीवन के साथ अनेक प्रयोग किए हैं जिनमें कुछ प्रयोग सफल हैं और मनुष्य के लिए बहुत कार्यों को सुगम बनाया है परन्तु कुछ प्रयोग मनुष्य जीवन को जटिल भी बनाते हैं जो उसके अस्तित्व पर ख़तरा पैदा करते हैं जैसे पुरुष को स्त्री व स्त्री को पुरुष में परिवर्तित करना या परमाणु जैसे घातक हथियारों का निर्माण करना आदि।
तो कुल मिलाकर यह एक जटिलता पैदा करना है। बहुत चीजें आवश्यक होती हैं लेकिन कुछ चीजें अनावश्यक भी होती हैं लेकिन प्रकृति ने हर चीज आवश्यक बनाई है सभी वस्तुएं, सभी के लिए आवश्यक नहीं हैं।
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