सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

सब अपनी ओर रवाना हैं।

 सब जीवों की दिन रात की दौड़ सिर्फ़ अपनी ओर आकर्षित करने की है और इसका वास्तविक रूप परमात्मा है।अर्थात हम सब जीवों की दौड़ परमात्मा की ओर है हमारे रोज़मर्रा के काम, हमारी संस्कृति है वह संस्कृति परमात्मा है हमारे काम क्या हैं? क्यों हैं? हम ही अक्सर इनसे भी अज्ञात रहते हैं हम अपनी संस्कृति को पहचान नहीं पाते अर्थात अपने आप को सटीक जानते नहीं हैं और लगातार बेतरतीब तरीके से दौड़ते रहते हैं।

हम सब जीवन के रेगिस्तान में हैं और पानी के तालाब की ओर प्यासे होकर दौड़ रहे हैं। परमात्मा वह सागर है जिसमें जाकर सब नदियां मिलती हैं हर नदी सागर की ओर बहती है बहना उसकी संस्कृति है यह उसका कर्तव्य है यही उसका जीवन है और यह जीवन  सागर को समर्पित है वह सागर परमात्मा है जीना भी सब जीवों की संस्कृति है, कर्तव्य है और सब जीव अपनी संस्कृति को समर्पित हैं अपने परमात्मा को समर्पित हैं। हम सबको उसी अथाह सागर में मिलना है हमारी उससे मिलने की दौड़ ही हमारा जीवन है।


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